SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ दीर्घायु व समृद्ध ऋद्धिमान करते हे ऐच्छिक रूप नोत्पन्न कान्ति वाले वे प्रति तेजस्वी सूर्य स्वरूप ||२७|| सयम तप का कर अभ्यास, उन्हीं स्थानों मे वे जाते हैं । मुनि हो चाहे गही किन्तु उपशान्त भाव जो अपनाते है ||२८|| उन सयत, सत्पूज्य, जितेन्द्रिय का स्वरूप सुनकर प्रति स्फीत । मृत्यु- समय पर शीलवान बहुश्रुत न कभी बनते भयमीत || २ || निज को तोल, विशेष ग्रहण कर यति धर्मोचित क्षमा वहे । तथाभूत आत्मा के द्वारा मेधावी सुप्रसन्न रहे ॥३०॥ तत मृत्यु आने पर गुरु से अनशन श्रद्धाशील ग्रहे । कपट - जनित रोमाच दूर कर देह भेद चाहता रहे ॥ ३१ ॥ मे तप के द्वारा करता तन का त्याग सधीर । तीन सकाम-मरण मे से वह किसी एक से मरता वीर ||३२|| उत्तराध्ययन मृत्यु-समय
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy