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________________ २४ दशवकालिक निपेधित या दत्त वे जब चले जाएँ लोटकर। अशन-पानी के लिए जाए वहाँ संयत-प्रवर ॥१३॥ पद्म उत्पल कुमुद अथवा मालती के सुमन को। तथा अन्य सचित्त सुम को छेदकर दे श्रमण को ।।१४।। संयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक सर्वथा। कहे देती हुई से-ऐसा न मुझको कल्पता ।।१५।। पद्म उत्पल कुमुद अथवा मालती के सुमन को। तथा अन्य सचित्त सुम को कुचलकर दे श्रमण को ।।१६।। संयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक सर्वथा। कहे देती हुई से-ऐसा न मुझको कल्पता ॥१७॥ कमल-कंद पलाश-कद व कुमुद उत्पल-नालिका। पद्म-नाल व इक्षुखण्ड सचित्त सर्षप-नालिका ॥१८॥ वृक्ष तृण या अन्य हरितो के तरुण पत्ते कहे। ___ कोपलें कच्ची सभी तज सुव्रती सयम बहे ।।१६।। तरुण मूगादिक फली कच्ची व भूनी अर्ध हो । कहे देती हुई से–यो कल्पता न मुझे अहो ॥२०॥ तथा कोल' अनुष्ण वेणुक' नालिका' काश्यप कही। . तजे तिल-पपड़ी अपक्व कदम्ब फल को ले नही ॥२१॥ शालि-पिष्ट व अर्ध-तप्त सचित्त जल उस भांति ही। पोदकी, तिल-पिष्ट, सर्पप-खल सचित्तन ले कही ॥२२॥ विजौरा व कपित्थ फल मूले व उसके खण्ड हो। शस्त्र-परिणति बिना कच्चे न इच्छे मन से अहो ॥२३॥ बहेड़ा व प्रियाल फल, फल चूर्ण बीजो का तथा । __ जानकर कच्चे उन्हे मुनि छोड देता सर्वथा ॥२४॥ सामुदायिक बडे-छोटे कुलो मे भिक्षा करे। लाँघ छोटे कुल नही उच्छृत कुलो मे संचरे ॥२५॥ दीनता तज वृत्ति खोजे नही खेद करे कृती। गृद्ध भोजन मे नही, मात्रज्ञ एषण-रत मति ॥२६॥ १ बेर, जो उवला हुआ न हो । २ वश करीर । ३ काश्यप-नालिका । ४ पाईसाग ।
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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