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________________ १८ . दशवकालिक उभय सह-भोजी जनो मे दे निमत्रण एक नर । दीयमान न ले अपर की भावना देखे प्रखर ।।३७।। उभय सह-भोजी मनुज देते निमन्त्रण हो अगर । दीयमान करे ग्रहण निर्दोप हो तो सतवर ।।३८।। विविध भोजन सगर्भा-हित बना, वह यदि खा रही। छोड दे उस अशन को, पर भुक्त-शेप ग्रहे सही ।।३।। निकट-प्रसवा गभिणी यदि उत्थिता वैठे पुन । ... श्रमण-हित बैठी हुई यदि खडी होती है पुन. ॥४०॥ सयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही। . -- कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नही ॥४१॥ वाल अथवा वालिका को स्तन्य पान करा रही। ___“छोड कर रोते उन्हे यदि अगन-पानी दे रही ।।४२॥ सयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही। कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नहीं ॥४३॥ जहाँ कल्पाकल्प-गका पान-भोजन मे सही। - कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नही ॥४४॥ उदक-घट, चक्की व पीढे प्रस्तरादिक से पिहित। तथा लेप व श्लेष आदिक से मँढा हो कुत्रचित् ।।४।। श्रमण-हित यदि खोलकर दें, यो दिलाये जो कही। - कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नही ।।४६।। प्रशन-पानक और नाना खाद्य-स्वाद्य कही अगर । दान-हित यह है बना, यो जानकर या श्रवणकर ॥४७॥ संयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही। ' कहे देती हुई से-मै इसे ले सकता नही ।।४८।। अशन-पानक और नाना खाद्य-स्वाद्य कही अगर । पुण्य-हित वह है बना, यो जानकर या श्रवण कर ।।४६।। सयतो को पान-भोजन वह अकल्पिक है सही। कहे देती हुई से-मैं इसे ले सकता नही ।।५।।
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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