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________________ १२ , · · दशवकालिक पर AI त्रिविध-त्रिविध मनोवचन तन से न करता उम्र-भरी " नही करवाता व अनुमोदन न करता पार्यवर || पूर्वकृत का प्रतिक्रमण निन्दा' व गैहीं कर रहा। .. ""आत्म का व्युत्सर्ग कर भगवन् ! सतत अंघ हर रहा ।।६।। साधु-साध्वी गण सुसंयत, विरत, प्रतिहत-अघ, सदा। और प्रत्याख्यात-पापाचरण रहता सर्वदा ॥१७॥ 'दिवस में, निगि मे, अकेला और परिषद् में कदा! - नीद में सोया हुआ या जागता रहता यदा ॥८॥ कीट, शलभ पिपीलिका. या कुंथु हों यदि हाथ पर । T, उदर, सिर, वस्त्र अथवा पात्र पर ।।९| रजोहर पर -और गोच्छक- तथा उंदुक- आदि पर। दण्ड पीठ व फलक शय्या और संस्तारादि पर १००। इस तरह के अन्य उपकरणादि ,पर प्राणी , पड़े। यत्न से प्रतिलेखना कर बार-बार परे करे ॥१०१॥ प्रमार्जन करके रखें 'एकान्त में सम्यक् उन्हे । ___कष्ट पहुंचे, उस तरह-न रखे इकट्ठे कर उन्हे ॥१०२॥ अयतना से घूमता वह प्राणि-वध करता सही। बन्ध होता पाप को, जिसकाकि फल है कटुक ही ॥१०३।। अयतैना से खडा होता प्राणि-वध करता वही । वन्य होता पाप का जिसका कि फल है कटुक ही ॥१०४।। अयतना से बैठता . वह प्राणि-वध करता सही। बन्ध होता पाप का जिसका कि फल है कटुक हो ॥१०॥ अयतना से लेटता वह प्राणि-वध करता सही । बन्ध होता पाप का जिसका कि फल है कटुक ही ॥१०॥ अयतना से. जीमता वह प्राणि-वध. करता सही। . बन्ध होता पाप का जिसका कि फल है कटुक ही ॥१०७॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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