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________________ अ० २६: सम्यक्त्व-पराक्रम प्रतिक्रमण" से भगवन् ! जोव प्राप्त क्या करता सुगुण महान ? प्रतिक्रमण से व्रत के छिद्रो का रुन्धन करता धीमान ॥३६॥ व्रत-छिद्रो को ढंकने वाला, आश्रव-गण को देता रोक । चरित्र के धब्बो को शाघ्र मिटा देता है वह गत-शोक ॥४०॥ और आठ प्रवचनमाताओ में हो सावधान सचरता। सम्यक् सयम मे तल्लोन व समाधिस्य हो, विहरन करता ॥४१॥ कायोत्सर्ग१२ क्रिया से किस फल को पाता है जीव तपोधन ! इससे अतीत सांप्रत के अतिचारो का करता सुविशोधन ॥४२॥ नीचे रखने वाले भारवाह की ज्यो फिर हलका बनता। प्रशस्त ध्यान लीन हो क्रमश सुखपूर्वक वह विहार करता ॥४३॥ प्रत्याख्यान-क्रिया" से भगवन् ! जीव प्राप्त फिर क्या करता है ? प्रत्याख्यान-क्रिया से आश्रव द्वारो का रुन्धन करता है ॥४४॥ स्तवना-स्तुति-मगल" से क्या फल प्राणी पाता है भगवन ? __इससे दर्शन ज्ञान चरण की बोधि लाभ करता शुभ मन ॥४॥ ऐसा वोधि-लाभ वाला वह मोक्ष प्राप्त करता है आखिर । वैमानिक सुर बनने लायक करता आराधना या कि फिर ॥४६॥ काल-प्रतिलेखना५ जीव को क्या फल देती है भगवन् ! ज्ञानावरणीय कर्म को इससे करता है क्षीण श्रमण ॥४७॥ प्रायश्चित्त-क्रिया' से भगवन् ! प्राणी किस फल को पाता? शुद्धि पाप की करता इससे निरतिचार फिर बन जाता ॥४८॥ सम्यक् प्रायश्चित्त विधायक, दर्शन-ज्ञान-विशोधन करता। फिर चारित्र व उसके फल की आराधना सफल वह करता ॥४६॥ प्रभो । क्षमा करने से प्राणी किस फल को करता है प्राप्त ? जीव क्षमा करने से झट प्रल्हाद-भाव को करता प्राप्त ॥५०॥ वर प्रल्हाद-भाव से प्राण-भूत सब जीव सत्व मे अभिनव । मित्र-भाव होता फिर भाव-शुद्धि कर निर्भय बनता मानव ॥५१॥ हे भगवन्! स्वाध्याय-क्रिया से जीव लाभ क्या करता प्राप्त ? इससे ज्ञानावरणीय कर्म को कर देता है शीघ्र समाप्त ॥५२॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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