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________________ सताईसवाँ अध्ययन खलुंकीय शास्त्र - विशारद गणधर स्थविर गर्ग मुनि गुणाकीर्ण विद्वान । गणी पदस्थित हो करता था वह समाधि का प्रति सधान ॥ १ ॥ करते हुए वहन वाहन को वृष के वन होता उल्लंघित । योग - वहन करते मुनि के संसार स्वयं त्यो होता लघित ॥ २॥ दुष्ट बैल का योजक प्राहत करता हुआ क्लेश पाता । अनुभवता असमाधि व उसका चाबुक शीघ्र टट जाता ॥३॥ बार-बार बीघता किसी को किसी एक की पूछ काटता । समिल तोडकर कोई दुष्ट वृषभ तब उत्पथ मे चल पडता ॥४॥ करवट ले गिर पडता, सो जाता व बैठ जाता कोई । उछल-कूद कर तरुण गाय की ओर भागता शठ कोई | कपटी सिर निढाल कर लुटता, कोई क्रोधित प्रतिपथ चलता । मृत की ज्यो गिरता कोई द्रुतगति से बैल भागता || ६ || रास काट देता छिनाल, दुर्दान्त जुए को देता तोड़ | सो-सों कर वाहन को छोड़ बैल कोई जाता है दौड़ ||७|| धर्मयान-योजित कुशिष्य भी दुष्ट-योज्य वृष की ज्यो होते । धर्मयान को तोड़ गिराते जो दुर्बल-धृति वाले होते ॥ ८॥ रस - गौरव करता है । कोई सुचिर क्रोध करता है || || भिक्षा मे आलस्य करे कोई अपमान - भीरु अभिमानी । हेतु कारणो से अनुशासित करते किसही को गुरु ज्ञानी ॥१०॥ तब बोलता बीच मे कोई मन मे प्रकट द्वेष करता है । वार-बार गुरु के वचनो के विरुद्ध मे कोई चलता है ॥११॥ वह न जानती मुझे, न देगी मुझे, जानता हूँ वह बाहर - चली गई होगी, मैं ही क्यो ? कोई अन्य चला जाए फिर ॥१२॥ कोई शिष्य ऋद्धि का गौरव कोई कोई साता गौरव करता
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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