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________________ १५२ उत्तराध्ययन है आषाढ मास मे दो पद, चार पाद-मित पौष मास मे । त्रिपद-प्रमाण पौरुषी होती है,आश्विन फिर चैत्र मास मे ॥१३॥ सात रात मे एकागुल व पक्ष मे दो अगुल परिणाम । एक मास मे चतुरगुल घटती-बढती छाया पहचान ।।१४।। शुचि भाद्र व कार्तिक व पौष फाल्गुन व माघ के कृष्ण पक्ष का। एक रात-दिन कम होता, होता पखवारा चौदह दिन का ।।१५।। ज्येष्ठादिक त्रिक मे छह आठ अपर त्रिक मे प्रतिलेखन-बेला। तृतीय मे दश, चौथे त्रिक मे आठ अधिक प्रागुल पर, चेला!॥१६॥ बुद्धिमान प्रविचक्षण सयत निशि के चार विभाग करे। उन चारो भागो मे उत्तरगुण-गण आराधना करे॥१७॥ प्रथम प्रहर मे मुनि स्वाध्याय करे व दूसरे मे सद्ध्यान । ' प्रहरं तीसरे मे निद्रा, चौथे मे फिर स्वाध्याय महान ॥१८॥ जो नक्षत्र रात्रि की पूर्ति करे वह नभ के तूर्य भाग मे। आ जाए तब हो जाए स्वाध्याय-विरक्त, प्रदोष काल में ॥१६॥ वह नक्षत्र गगन के तूर्य भाग जितना अवशेष रहे जब । __वैरात्रिक वह काल जान, स्वाध्याय-रक्त हो जाए मुनि तब ॥२०॥ दिन के प्रथम प्रहर के तूर्य भाग मे भंड-उपधि प्रतिलेखन__ करके, गुरु वन्दन कर, दुख-नाशक स्वाध्याय करे तन्मय बन ॥२१॥ पौन पौरुपी समय बीतने पर गुरु को वन्दना श्रमण कर। किए बिना प्रतिक्रमण काल का, भाजन प्रतिलेखना करे फिर ।।२२।। मुखवस्त्रिका प्रतिलेखन कर गोच्छक प्रतिलेखना करे। __ अगुलि-गृहीत गोच्छक, फिर वस्त्रो की प्रतिलेखना करे ॥२३॥ देख ऊर्ध्व स्थिर रखे वस्त्र को फिर झटकाए उसे तथा। । फिर प्रेमार्जना करे तीसरे मे, मुनि करे नही त्वरता ॥२४॥ न नचाए, मोडे न, अलक्षित, स्पर्शित करे नही मुनिवर । नौ खोटक षट्पूर्व करो से प्राणि-विशोधन करे प्रवर ॥२५॥ आरभटा सम्मर्दा फिर मौशली व प्रस्फोटना कही। विक्षिप्ता वेदिका दोष छह, प्रतिलेखन मे तजे सही ॥२६॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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