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________________ उत्तराध्ययना १५० भोगों में होता उपलेप, प्रभोगो लिप्त नही हो पाता । भोगी जग में करता भ्रमण अभोगी विप्रमुक्त हो जाता ||३६|| गीला सूखा मिट्टी के दो गोले फेके गए भीत पर । उनमें जो गीला गोला था चिपक गया वह शीघ्र वही पर ॥४०॥ इस प्रकार दुर्बुद्धि काम ग्रासक्त चिपट जाते विषयों से । जो विरक्त से गोले सम, वे न चिपटते हैं विषयो से ॥४१॥ यों जयघोष श्रमण से उत्तम धर्म श्रवण कर महामना । व वह विजयघोष निज गेह छोड़ कर भट प्रव्रजित बना ॥ ४२ ॥ 1 तप सयम से पूर्वार्जित कर्मों को क्षय कर शुद्ध मति । विनयघोष जयघोष पा गए शीघ्र अनुत्तर सिद्धि - गति ॥४३॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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