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________________ प्रिय है। में उनका आग्रह टाल नही मया । वेवान छह दिनो में उनका पानवाद बनाकर उनको दिया। वे बडे प्रसन्न हए। फिर बीसवें तथा इक्कीसवें अध्ययन का पद्यानुवाद हिसार पहुँचने पर तैयार किया । तब यह आत्म-विश्वाग पैदा हुआ कि अव समस्त उत्तराध्ययन का पद्यानुवाद किया जा सकता है। फिर में अनुवाद-कार्य में जुट गया । अनेक उतार-चढाव आए । अन्त में वि० म० २०१६ चैत्र कृष्ण ५ को कार्य पूरा हुआ और उसके माय-माय वपों से सेंजोर्ड हुई मेरी साघ भी पूरी हुई । आत्मतोप मे मन भर गया। लाडनू मे परम श्रद्वेय आचार्य प्रवर के दर्शन होने पर जब यह कृति मेंट की गई तो करीव वीस मिनट तक लवलोकन के पश्चात् गुम्देव ने फरमाया कि 'अच्छी मेहनत की है। ठीक बनाया।' 'जैन भारती' मासिक सन् १९६८ मार्च के अङ्क में दमका तेईसवां अध्ययन 'केशी-गौतम मंवाद' प्रकाशित हुआ। फिर जून के मह ने अमन. माठ अध्ययन प्रकाशित हुए। वि० स० दो हजार उन्तीस के मर्यादा-महोत्सव पर नाहित्य उपसमिनि का गठन हुआ। उसके निर्णयानुसार अप्रकाशित साहित्य को मेंट करना अनिवार्य था । मैने यह कृति भी भेंट की । उपसमिति ने कुछ सुझाव देते हुए कहा कि इन दोनो ही कृतियो का पुन अवलोकन किया जाय । उस परामर्श के अनुसार वि० स० दो हजार इकतीस पचपदरा मे लगभग छह महीनो तक इसी में लगा रहा। पुन इन दोनो कृतियो को मगोधित कर उपसमिति के समक्ष रखा । उपसमिति' ने इन्हे मान्यता दे दी। जैन विश्व भारती' ने इन्हे पुस्तक का रूप दे दिया। - मैं कहाँ तक सफल रहा, इसका निर्णय विज्ञ पाठकों पर ही छोडता हूँ। किन्तु मुझे जो आनन्दानुभूति हुई, समय का सदुपयोग हुआ, चित्त की एकाग्रता रही, वह निश्चित ही अनिर्वचनीय है। अत मुज्ञ पाठको से एक निवेदन करना आवश्यक समझता हूं कि जहाँ कही भी इन कृतियो में कमियॉ ध्यान में आयें, मुझे बतलाने का कष्ट करें, ताकि अगले सस्करण में मैं उनका संशोधन-परिमार्जन कर सकूँ। अन्त में तेरापथ शासन एव युगप्रधान आचार्य श्री तुलसी का मै अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, जिन्होने मेरे जैसे पामर प्राणी पर अपना वरद हस्त रखकर उसे दो अक्षर वोलने एवं लिखने लायक बनाया। ' इस अवसर पर मैं मुनि श्री दुलहराजजी को भी नही भुला सकता, जिन्होंने अन्यान्य सहयोग के अतिरिक्त इसकी प्रस्तावना लिखकर भी मुझे अनु-ग्रहीत किया है। आसीन्द (भीलवाड़ा), राजस्थान- . वि० स० २०३२, आश्विन शुक्ला ८ . . - मुनि मुकुल १२।१०७५
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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