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________________ उत्तराध्ययन ६२ हाथापाई कलह - विवर्जक होता कुलीन लज्जावान । प्रतिसलीन व बुद्धिमान कहलाता वह विनयी गुणवान ||१३|| गुरुकुल मे बसनेवाला उपधान- समाविवान मतिमान | प्रियवादी व प्रियकर मुनि करता है शिक्षा प्राप्त महान || १४ || धवल शख स्थित दुग्ध उभयतः ज्यों लगता है अति सुन्दर । कीर्ति धर्म-श्रुत से त्यो शोभान्वित होता बहुश्रुत मुनिवर ||१५|| वेग तथा शीलादि गुणों से कबोजी कथक हयवर । ज्यो शोभान्वित होता त्यो शोभित होता बहुश्रुत मुनिवर ॥ १६ ॥ नन्दिघोष से युक्त उभयतः चढा हुआ उत्तम हयपर । पराक्रमी भट ज्यो अजेय होता है त्यो बहुश्रुत मुनिवर ॥१७॥ साठ वर्ष का अति बलवान हथिनियो से परिवृत कु जर । अपराजित होता है उसी भाँति अपराजित बहुश्रुत नर ॥ १८ ॥ तीक्ष्ण शृग, अति पुष्ट स्कन्ध वाला यूथाधिप वृषभ-प्रवर । शोभित होता है त्यो बहुश्रुत भी बनकर आचार्य - प्रवर ॥१६॥ पूर्ण युवा, दुर्जेय तीक्ष्ण दाढोवाला हरि पशुओ मे ज्यो । सर्वश्रेष्ठ होता है बहुश्रुत मुनि भी अन्य तीर्थिको मे त्यो ॥ २० ॥ अप्रतिहत बल योद्धा शख चक्र व गदा धारक नटवर । वासुदेव होता है उसी भाँति होता बहुश्रुत मुनिवर ॥ २१ ॥ महा ऋद्धिशाली चतुरन्त चतुर्दश रत्नाधिप चक्रीश्वर । होता है त्यो पूर्व चतुर्दश धारी होता बहुश्रुत मुनिवर ॥ २२॥ सहस्रचक्षु पुरन्दर शक्र वज्रपाणी देवाधिप्रवर । होता है त्यों ही दैवी सपदाधिपति बहुश्रुत मुनिवर ||२३|| तिमिरविनाशकं उगता हुआ तेज- सदीप्त यथा दिनकर | होता है' त्यों ही तप द्वारा तेजस्वी बहुश्रुत मुनिवर ॥२४॥ ग्रहपति चन्द्र पूर्णिमा को नक्षत्र - निकर परिवृत परिपूर्ण । होता है त्यो बहुश्रुत मुनि मी सर्व कलाओं से परिपूर्ण ॥२५॥ सामाजिक जन का ज्यो कोष्ठागार विविध धान्यो से पूर्ण ॥ ज्यो कि सुरक्षित होता त्यो बहुश्रुतं विविध ज्ञान से पूर्ण ॥ २६ ॥
SR No.010686
Book TitleDashvaikalika Uttaradhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMangilalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1976
Total Pages237
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, agam_dashvaikalik, & agam_uttaradhyayan
File Size8 MB
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