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________________ ચૂંટ सणतुकुमारचरि [५८६ ] अहह पेच्छह सयल-जय-हरण रक्खसेण जो मुक्कु गिरिवरु | रोसारुण-लोयणिण सो लीलई कंदुगु व खिविवि दूरि विष्फुरिय-मच्छरु | धावड़ को विजय भहिउ सुहइ किंपि जंतु । इय तियसासुर - नहयरहं वयणई कुमरु सुणंतु ॥ [५८७ ] पीण मह - भु-जंत निष्पिट्टु सरसिच्छु लट्ठि व गलियअरि रक्खस पाव तुहुं मई जीवंति स-य-भरनिल्लज्जिण किण घोसिय [५८८ ] इय रु तुरिउ पसरत दुप्पेच्छ-मच्छर- वसिण आवडइ रक्खसह तह जह परिवियलिर - नयणु रक्खस अहमु मही-चलइ सयल धाउ-रस-पसर- दाणिण | कुण तो दिय-गणहं अइरिण || विजय- सेस तेयस्सि । जय-जय-रवु इयरेसि ॥ लहु पुणरवि उडिउण जिण निहणिय- महिहरहं तसिय-सुरासुर - नहयरिहिं मुग्गरु वच्छ-त्थलि पडउ ५८८, १. क. पसरंतु. अरुण - नयणु धाविवि खणदिण । देहु निविड भु-दंड-जंतिण ॥ गरुय - मुक्क पुक्कारु । पडियउ नीसाहारु || [५८९ ] अह कर्हिचि विलद्ध - चेयन्नु फुरियको सो रक्खसाहमु । सिरई पलउ पार्वति निरुवम् ॥ पेक्खिज्जंतु पांव तुह क्खय- हेउ ॥ - सु एउ । ३७
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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