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___सनत्कुमारचरितः जाणं थई; मेंरोना झंकारे वारांगनाओंए समयं जंणाव्यो, तूर्यरव शमतां सेवको पोताने घरे गया; नृत्य करता नटो अंने नाट्यकारी स्वस्थाने पहोंच्या वधा अधिकारीओ श्रमविनोदमां मग्न बन्या (७४३); दोडीने जैलदी एंकठा थयेलों प्राहरिकोए समयसूचक शंख वगाड्या; असंख्य अतिथिगृहो अने सत्रशाळाओनी साफसूफी कराई; अग्रासन पर बेसनारा ब्राह्मणोने तैयार करवामां आव्या; कृपण, अनाथ अने मागणोने भोजन आपवामां आव्युं (७४४); वारांगनाओने सज्ज करवामां आवी; गजानी भोजन-पीठिका पासे वैद्यो अने मन्त्रवादीओ पहोंची गया; जमनाराओ आवी पहोंच्या; वैश्वदेवने आहुति : अपाई; चकोरोना पांजरा महींथी तहीं लई जवाया; वृक्षनी टोचे रहेलां फलको पर वायसपिंड नखाया. (५.४५). तरत ज शालि, शिखरिणी, सूप, पक्वान्न, मध, घी, तिम्मण, दही, दूध, तथा अनेक पानक अने उत्तम व्यंजननी बनेलो, मधुर, कषाय, कटु, तिक्त, लवण (कोरे स्वाद वाळी), जगतनुं रंजन करनारी, शीघ्र धातुवृद्धि करनारो, सेंकडो पुण्यो करनारने ज प्राप्त थाय एवी रसोई दरबारी रसोईयाओए पीरसी. (७४६). ते पछी साकर, द्राक्ष, खजूर, अखोड, दाडम, कलमशालि, दाळ, व्यंजन, घेवर, . लापशी, झूठ, सेव, लाडु, मुरको, सुंवाळो, सांकळी, मांडा अने भडभडिया. वैद्यक अनुसार चक्रवर्तीए अन्य जमनाराओनो साथे आरोग्यां (७४७). ते पछी लवंग, एलची, कपूर, जंबीर, जायफळ, तज, तमालपत्र, जावंतरी, ककोल, सोपारी, नागरवेला पान अने कपूरनी बोडी आरोगी अने मस्तकथी नुमता सेवकोने पण यथायोग्य आपी. आम तेणे वधा भोगोनो रस माण्यो (७४८). ते पछी कस्तूरी, सघमघतुं हरिचंदन, केसर, सूखड़, अगर अने कपूरना मिश्रण वाळु, शतपत्रो, चंपो, करणं अने जाईनां फूलनी पांखडोओना सुगंध वाळु, सहस्रपाक वडे तैयार करेलु विलेपन अंगे लगाड्यु, देवे दोधेलां आभरणो सर्वागे सज्यां (७४९). ते पछी पोतानी स्वाभाविक कांतिनी अतिशयताथी देव अने असुर रूपी नक्षत्रो अने चंद्रने झांखा पाडता सूर्य समा-पूर्व कर्मथी प्राप्त इंढ संधिबंध युक्त सुंदर सर्वाग वाळो, अनन्य आभूषण सजेलो, देवताई दुकूळ पहेरेलो, बंदीगणोथी यशनो उद्घोष करातो, पोताना परिजनोथी शोभतो (७५०) चक्रवर्ती • सर्वावसरमां विशाळ अने उत्तम आस्थानमंडपमां बेसीने सेवको पासे सहर्ष पेला
वटुकोने वोलावे छे. तेओ पण चित्तमा अनन्य हर्ष धरता त्यां आवी पहोंचे छे. परंतुं विशेष रूपे शणगार सजेला चक्रवर्तीने जोईने (७५१) 'अरेरे, धिक्कार छ,
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