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________________ १२६ सनत्कुमारचरित विशाल समृद्धि वाळो इन्द्र हतो ते ज कल्पमां ए हमणां सुरेन्द्र थयो छे, अने एटले मोटो भाई गणीने ते तारो सत्कार करावे छे, अने मारे मुखे अत्यंत आदरपूर्वक तारा प्रत्ये भक्ति प्रकट करे छे'. (७२६). • ए प्रमाणे सांभळीने चक्रवर्तीए संतोपथी विकसता वदनकमळ साथे ते सघळी भेट स्वीकारी, अने वैश्रवणने पोतानी पासे ऊंचु आसन आप्युं. ए पछी वैश्रवणे एक योजन भूमिमांथी धूळ, कचरो अने घास आभियोगिक देवोनी पासे साफ कराव्यां (७२७), अने, वज्र, मरकत, पुलक, वैढूर्य, चंद्रकांत, सूर्यकांत वगेरे पचरंगी रत्नो वडे बनावेली अने किरणोथो अंधकारने अजवाळती उत्तम पीठिका रची. तेना पर पोताना. अनुपम महिमाथी देवविमानने पण जोती ले तेवो, ऋण भुवननी सुंदरताना धाम रूप अभिषेकमंडप बनाव्यो. (७२८). तेनी अंदर पूर्व दिशानी अभिमुख सिंहासन स्थापी तेनी आगळ पादपीठ मूकी, शुभ मुहूर्ते ते उत्तम नरने आसन पर वेसारीने अने क्षीरोद समुद्रमांथी आभियोगिक देवोनी पासे मणि अने कांचनना कलश वडे निर्मळ जळ अणावीने ( ७२९), तेने पछी मगध, गंगा, वरदाम आदि उत्तम तीर्थोना जळ तथा पुष्प, गंध अने औषधिओ लईने, 'आ नररत्ननो पृथ्वीमां चिरकाळ जय हो, जय हो' एम वारंवार बोलीने, ज्यारे विद्याधर, मनुष्य अने देवोनां वृन्द मंगळ उच्चारतां हतां, मागणो अने स्वजनोने इच्छानुसार आपवामां आवतुं हतुं (७३०), ज्यारे ढोल, मृदंग, तबलां, ढक्का, फांसाजोड, ताल, वांसळी, वीणा, काहला अने बुक्का तथा करडि, भंभा, मेरी अने हुडुक्का ऊंचा स्वरे वागतां हतां, ज्यारे इन्द्रना आदेशथी रंभा, तिलो'तमा अने उर्वशी तरत ज आवीने नाटारंभ करी रही हतो ( ७३१), त्यारे अतिशय भारे धामधूमथी चक्रवर्तीनो राज्याभिषेकमहिमा संपन्न करीने वैश्रवणे इन्द्रने सघळो पूर्व वृत्तांत निवेदित कर्यो. नररत्न सनत्कुमार पण चक्रवर्तीपद पामीने जाणे के अनन्य सुधामृते सिंचित थयो होय तेम छखंड धरती भोगववा लाग्यो. (७३२). एक दिवसे ज्यारे देवराज इन्द्र रंगमंडपमां सौदामिनीनाटक जोवा पोताना परिवार साथै सहर्ष वेठो हतो त्यारे ईशानकल्पमांथी कोई एक देव कार्यप्रसंगे तेनी पासे आव्योः तेणे आखा शरीर पर आभूषण पहेर्या हतां अने पोतानी देह- कांतिना विस्तारथी ते वांजा बधा देवोनी कांतिने हसी काढतो हतो. (७३३). ए. वेळा इन्द्रे तेनो सत्कार कर्यो अने कामकाज पूरुं करीने ए देव स्वस्थाने गयो. 1
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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