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________________ सनत्कुमारचरित ११७ हाथीओना कुंभस्थळाने निर्दयपणे चीरता, धनुष्यगांथी बाण छोडीने घाथी ऊछळती रुधिरने छोळे आकाशने लाल करो देता, मुद्गरना प्रहारथी सुभटोनां माथां बूंदा (६५५), शक्ति, भालां, शल्य, वावल्ल, नाराच, मुसुंढि, गदा, वज्र, चक्र, कर्तरी अने कुंत वडे हाथी, घोडा, अने सुभटना समूहने अनेक प्रकारे हणता ते संग्रामदक्ष कुमारे. क्षणमात्रमां अशनिवेग विद्याधरने वश कर्यो. ते पछी ते कुरुवंशना गगनमां पूर्णपणे प्रकाशतो चंद्र, जेणे पोतानां पराक्रमथी सुर, असुर अने खेचरनां सुभटोना चित्तने तुष्ट कर्या छे अने जेनो अनन्य कीर्तिकलाप आखा भुवनमां विस्तर्यो छे तेवो, देवो अने विद्याधरोनी तरुणीओ वडे कराती पंचविध पुष्पोनी: दृष्टि अने चोतरफ थता मधुर आलापनी वच्चे, विद्याधरे आपेला उत्तम रथ पर आरूढ थईने पहेलांना ज महेलमां आवी पहींच्यो. (६५६ - ६५७). ते पछी जेमनो धर्मनी अने कर्मनी बाबतोमां निर्मळ विवेक छे तेवा, अतिशय हर्षथी रोमांचित थयेला खेचरराज चंडवेग अने भानुवेगे ते ज क्षणे विनयथी नमीने कहेला वचनने मान आपीने शत्रुकुळनो संहारक सनत्कुमार पोतानी बने पत्नीओने साथे लईने गांधर्वपुर गयो. (६५८). अनुक्रमे तेणे एकेएक विद्याघर - राजाने जोत्या अने एम ते विद्याधरचक्रवर्ती बन्यो. लाखो विद्याओ तेणे साधी, मागनाराने यथेष्ट आप्यु. एक दिवस विद्याधरराजा चंडवेगे तेने कर्छु, 'स्वामी, तुं आखा जगतनी मननी इच्छा पूरी करे छे (६५९), तो कृपा करीने तुं मारी आ सो कन्याओंने परण, अने आ मारुं राज्य पण स्वीकार, जेथी करीने हुं मोक्षने मार्गे प्रयाण करूं. कारण के राज्यनी धुराने धारण करो शके तेत्रा पुत्रना दर्शन न थतां, हुं आटला वखतथी तारी ज प्रतीक्षा करी रह्यो हतो. (६६०). पोताना अतिशयज्ञानथी आखा जगतने जागनार अर्चिमाली नामना अहीँ आवी पट्टों चेला मुनिवरे मने कछु हतुं, 'अश्वसेन राजाना कुलगगननो चंद्र अने जगतमां सर्वोत्तम नर सनत्कुमार चक्रवर्ती तारी सो कन्याओनो अने भानुवेगनी कन्याओनो पण प्रियतम पति थो (६६१). तेनी कृपाथी तुं पण तारा कुटुंब अने राज्यना ं विपयमां निश्चित थईने सद्धर्मनो साधक बनीश'. एटले में कयुं, 'हे साधुवर्य, तेने कई रीते ओळखवो ते मने कहो'. एटले मुनिवरे आदेश दींधो, 'घोडो जेनुं अपहरण करीने महान अटवीमां नाखशे, त्यांथी जेणे पूर्वकृतं पुण्यना माहात्म्य थी प्राप्त करेला उत्तम चरित्र वडे जगतने जीत्युं छे अने उचित कार्यमा जे दक्ष छे तेवो कमक्ष यक्ष जेने पोताना हाथ ऊंचकीने) मानससरोवरमा मूकशे, अने जे पोताना शत्रु असिताक्ष यक्षना दर्पनुं मर्दन करशे, ते तारी पुत्री ओनो हृदय प्रिय थशे एमतुं .
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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