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________________ १०८ सनत्कुमारचरित खडको वडे शत्रुने जे कचरी नाखे छे, जेमां हाथीओ गभराटथी चीत्कार करी रह्या छे, एवा एक भारे पहाउने हाथमां ऊंचकीने, देवांगनाओ अने विद्याधरीओनां आंसुथी सिंचित मस्तक वाळा कुमारनी उपर फेंक्यो. (५८४). तें पछी विकराळ दंतपंक्ति वाळा, मांस अने लोही वगरनां शरीर वाळा, चीवा नाक वाळा, सपाट (?) पेट वाळा, फीकी अने ऊंडी आंख वाळा, कोई वे मोढाळा, कोई त्रण मोढाळा, कोई चार मोढाळा तो कोई पांच मोढाळा एवा वेताळोए आनंदमां आवो नईने जयजयकारनी घोषणा करी. एटले तरत ज शरीर धुणावी ए गिरिपीठने बाजुए नाखी दईने (५८५), 'आहाहा ! जुओ, आखा जगतने हरी लें तेवां रोषथी रातां लोचनो वाळा राक्षसे फेंकेलो पहाड रमतमात्रमां दडानी जेम दूर फगावी दईने मत्सर भरेलो आ कोई सर्वश्रेष्ठ, सुभट कशुंक बोलतो धसे छे' ए प्रमाणे देव, असुर अने विद्याधरोनां वेण सांभळतो कुमार (५८६), 'अरे पापी राक्षस, विशाळ अने पुष्ट भुजाओ रूपी यंत्रमां पिलाई, रसदार शेरडीना दांडानी जेम, तुं हमणां ज तारा गळीने बहार नीकळेला बधा धातुरसोनुं दान करीने पंखीओने तृप्त कर; स्वतेजे अन्य सौ तेजस्वीओने जीतनार एवा मारा जीवतां क्यो निर्लज्ज वीजा कोईनो : जयघोष करी शके ?' (५८७). ए प्रमाणे बोलता तेणे, एकाएक प्रसरेला मत्सरने लईने सामुं जोई न शकाय तेवी लाल आंखो करी, एकदम धसी जईने, ते राक्षसना शरीरने निविड भुजदंडना यंत्र वड़े एवं पील्युं के ते अधम राक्षसनी आंखो वहार नीकळी पडी, अने असहायपणे मोटो पोकार पाडीने ते धरती पर ढळी पड्यो.. (५८८). ए पछी केमे करीने भान आवतां ए अधम राक्षसे तरत ज पाछा ऊभा थईने, 'अरे पापी, जेना आघातथी पहाडनां शिखर पण नष्ट थई जाय तेवुं आ अनन्य मुद्गर, त्रस्त देव असुर अने विद्याघरोना देखतां ज तारी छाती पर पडो अने तारो नाश करो' (५८९) एम कहीने, छाती कूटती भयभ्रांत देवांगनाओना तूटेला हारना मोतीओथी मिश्रित बनेली अने आंखथी ओगळती अश्रुधारानी तथा तेमना निसासानी साथसाथ, तेणे सर्वथा पोताना ज विनाशकाळ जेवुं, कायरो माटे भयंकर मुद्गर, भारे. आवेगपूर्वक, ते कुमार शिरोमणिनी उपर फेंक्युं. (५९०). एटले मुद्गरना घाथी जेनां अंगो विकळ बनी गयां छे तेवो ते कुमार देवो अने विद्याधरोनी तरुणीओने दुःख थाय ते रीते धरती पर ढळी पड्यो. आथी. थोडाक संतोषथी फुलातुं राक्षसनुं सैन्य धसी जई, कुदी -ऊछळीने जयघोष करवा लाग्यं. ते पछी भानमां आवी, स्वस्थता प्राप्त करी, प्रचंड अभिमाने थरथरती भुजा वडे एक वटवृक्षने उखेडीने भारे क्रोधथी भ्रूजती कंधरा वाळा, खोचायेली कुटिने
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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