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________________ ९६ सनत्कुमारचरित . हतुं ? जो हतुं तो शु में न जोयुं ? जो जोयुं तो शुं चित्ते न चडयुं ? जो चित्ते चंडयु तो बीजा कशा बलवत्तर कारणे ते मनमाथी नीकळी गयुं ? केम के देव, दानव, मानव अने विद्याधरने पण हर्ष करवाने समर्थ आना जेवो बीजो कोई सुंदर .. संदर्भ विधाताए रच्यो नथी. (४९१). वळी जेणे विष्णुने श्रीपति निर्माण कयों, कामदेवने रतिपति, इन्द्रने उर्वशीपति, रामदेवने सीतापति, चंद्रने तारापति, तेणे ते बधु, हुं मार्नु छ के अवश्य आq स्त्रीरत्न निर्माण करवानी आतुरता हृदयमां धरीने, ते माटे अभ्यास करवा निमित्ते ज प्रवृत्ति करी छे' (8)(४९२)-आ प्रमाणे विचार करता अने हर्षथी रोमांचित थता कुमार प्रत्ये महेन्द्र सहेज हसीने कह्यु, 'त्रिभुवनना विजेता तरीके बंदीओ जेनुं कीर्तिगान करे छे तेवा हे स्वामी कामदेव, आ गजगामिनी, चंद्रमुखी, कोकिलस्वरी सुंदरीने तुं मनमान्यु वरदान केम आपतो नथी ? (४९३). ... .. : एटले मन, वचन अने काया उपर प्रबळ संयम राख्या छतां उत्तम तरुणीना करस्पर्शथी थयेला हर्षने कारणे जे अतिशय रोमांचित थयो छे तेवा कुमारने पोताना मित्रना वचनथी मधुर हास्य प्रगटयुं, अघरोष्ठ फरक्यो, वदन प्रफुल्लित थयु, नयन विकस्यां अने दांतनी आभाथी जाणे के भुवन श्वेत बन्यु. (४९४): एटले, 'अरे, आ शुं ?' ए प्रमाणे विचारती अने अत्यंत गभराटथी जेना हाथ, पग भने होठ कंपवा लाग्या छे तेवी ते कुमारी द्विगुणित बनेली मुखशोभा साथे थोडीक क्षण ज्यां ऊभी रही, त्यां तो ऊंचा हाथ करीने एक बंदीए कुमार समक्ष अवसरयोग्य स्तुतिपाठ कर्यो, 'हे प्रभु, एकचित्ते सांभळो. अत्यारे मूंड खाबोचियामांना चीया वडे, हाथीनुं झूड पोतानी सूंढथी उछाळेला फोरांओ वडे, तो हरणोनुं टोळं धीमे धीमे वागोळता मुखे क्याराओमां बेसीने तापने हठावी रह्यां छे. तापनी शांतिने अर्थे बंने भुजंग प्रियाना वदन- ( वदनने प्रिय) सरस चंदन सेवे छे. तथा तप्त अंगवाळा प्रवासीओ तरुछायानो आशरो ले छे.' (४९६). एटले सूर्य माथे आव्यो जाणीने पोतानी सखीओ साथे कुमारी, देहमात्रथी भने शून्य चित्ते, जेमतेम करीने पोताना घर तरफ चाली. कुमार पण धणे लांबे समये प्राप्त थयेली राज्यलक्ष्मी जाणे के हाथमांथी सरी गई होय तेम, मन, वचन अने कायाथी पहाड जेवो जड बनी जई क्षणेक त्यां ऊभो रह्यो. (४९७). .. . · पछी महेन्द्रसिंहना कहेवाथी कुमार ते उद्यानमांथी केमे करीने मात्र देह वडे पोताना आवासमां पहोंच्यो. आखा जगतना वस्तुसमूहने तणखला सम (निःसार)
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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