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________________ सनत्कुमारचरित कमळसरोवर, समुद्र, विमान, रत्नसमूह अने अग्नि, एटले गभरायेला मुखे एकदम उठीने, विनयपूर्वक हाथ जोडीने, तेणे राजाने स्वप्नो कह्यां. (४५३-४५४). एटले शरदपूनमना चंद्रनो उदय थतां जेम समुद्र, मेघमाळा दृष्टिए पडतां जेम मोर, सूर्य ऊगतां जेम कमळसरोवर, कमझूड जोतां जेम राजहंसो, अने वसंतउत्सवमा जेम आंबो, तेम जेनी शोभा द्विगुणित थई छे तेवो राजा, स्वप्नोथी सूचित सद्भाग्यनुं ज्ञान थतां, केमेय अने कयांये जाणे के समातो न हतो. (४५५). पछी पृथ्वी परना चंद्र रूप ते राजा, आनंदथी गद्गद वाणी वडे पोतानी प्रिया सहदेवीनी समक्ष बोल्यो, "देवी, देव, दानव अने मानव जेना चरणकमळने नमे छे तेवा जिनेश्वर जेवू, नव निधि अने चौद उत्तम रत्नना स्वामी एवा चक्रवर्ती जेवू, त्रण जगतने सुखकारक पुत्ररत्न तने प्राप्त थशे.' (४५६). एटले जाणे के अमृतरसना कुंडमां डूबी होय, जाणे के चिंतामणि मळ्यो होय, जाणे के चक्रवर्तीनी राज्यरिद्धि पामी होय, जाणे के घरमां ज कल्पवृक्ष ऊग्यु होय, जाणे के तात्कालिक कोई उत्तम मंत्र सिद्ध थयो होय ते रीते हर्षथी विकसित मुखकमळ वाळी देवी मस्तक पर अंजलि रचीने संतोषथी वारंवार बोलवा लागी, "एम ज हो. (४५७). ए प्रमाणे एक बीजाने आनंदपूर्वक धर्मनी अने धार्मिकोनी कथाओ. कहीने ते बनेए रात्रिनो बधो शेष भाग विताव्यो. पछी अरुणोदय थतां बंदीजनो राजभवन पर आव्या. मंगळ वाजिंत्रना नाद साथे करताळ ऊंची करीने गंभीर अने हर्षयुक्त ध्वनिथी तेओ आ प्रमाणे बोलवा लाग्या, 'उदयाचळनी पासे आवी लाग्यो होवा छतां, दृष्टिगोचर न होवा छतां, पोतानो तीव्र प्रताप हजी प्रसार्यों न होवा छतां, गुणरत्नोनो समूह हजी वेयों न होवा छतां, कमळोने आनंद आपतो सूर्य, गर्भस्थ सत्पुरुषनी जेम, जगतमा प्रतिपक्षीओनुं तेज हरी ले छे, सौने संतुष्ट करे छे अने सज्जनोने हर्षथी प्लावित करे छे. (४५८-४५९). एटले देवीना स्वप्नने अनुरूप ज, जाणे के बंदीजनो भण्या एम अत्यंत हर्षपूर्वक चिंतवता राजाए, : नियुक्त करेला अधिकारीओ द्वारा, बंदीओने घणुं तुष्टिदान अपाव्यु. ते पछी शय्या-: मांथी ऊठीने हर्षथी विकसित मुखे राजाए सर्व प्रातःकर्म पताव्यु. (४६०). . . . पछी सुंदर शणगार सजीने, जेणे पोतानो दारसंग्रह सफळ कर्यो छे, अने आनंदथी. स्फुरता रोमांच वडे जेनो देह शोभे छे तेवा, कुरुवंशना उत्तम आभूषणरूप तें .
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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