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________________ ८० नेमिनाहचरिउ [७५८ ] ree afe fue कम्म- परिणाभु कु-वि दारुणु भुवह वि चलु परियणु मणु अथिरु तणु पुणु एहु अणत्थ- फलु अ वुह जणिय-पडिकम्म - विहि [७५९] जमिह यह पदम उप्पत्ति ऊ व विवेड-जणपगईए वि निग्गुणउं कप्पूरागरु-मिगमयहं एहु सरीरु विणास यरु अइव तुच्छ संपय समग्ग वि । सरय- अब्भ-सम दइय-संग वि ॥ सलाइहि निहाणु | वितह - रूव- अभिमाणु ॥ [७६०] सुक्क सोणिय- रुहिर-वस-मंस - गरहणिज्जु उव्वेय कारणु । नवहिं असुर - विवरिहिं दुहावणु ॥ चहु-भोगुवभोगाई | दुह यरु निस्संगाई || मज्जासुइ-पूइ-रस- मुत्त- अंत- पित्त-प्पलाविउ । नव-छिद्दु मलाविल विहिण असुइ-दलिएहि घडाविउ || इय जह जह परिचिंतिय तणुहु सुइत्तणु किंपि । तह तह दीस असुइमउ सयल वि विहिं पि ॥ [७६१] जाव अज्ज वि. सयण साहीण जा लच्छि न परिहरइ जा पिययम पिय-करिय जाव भियग वर्हति वस-गय । जाव आण खंडहिं न अंगय || जाव न जायt विहर-यरु तणु परिणाम असारु । aTa-fa fasजर धम्म-विहि पर भव-कय-माहारु ॥ [ ७१८
SR No.010685
Book TitleSantukumar Chariya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorH C Bhayani, Madhusudan Modi
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1974
Total Pages197
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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