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________________ @ सामायिक की दुर्लमता व इसका महत्व सामायिक साधना का आवश्यक अनुष्ठान एवं आध्यात्मिक आलोक का प्रगटकर्ता है । सामायिक ही वह साधना है जिसे सम्पन्न कर आत्मा परमात्मा, जीव शिव व भक्त भगवान.वन सकता है। भगवान महावीर ने . अपने दिव्य आघोष में कहा 'जे केवि गया मोक्खं, जेवि य गच्छंति जे गमिस्संति । ते सव्वे सामाइय-प्पत्रावणं मुरगयन्वं ।। कि तिब्बेण तवेणं, कि च जवेणं कि चरित्तणं । समयाइ विरण मुक्खो, न हु हुओ कहवि न हु होइ ।' अर्थात् भूत में जो भी साधक मोक्ष में गये, वर्तमान में जो जाते हैं और . भविष्य में जायेंगे, वे सभी सामायिक के प्रभाव से ही। यह कार्य सिद्धि. सामायिक से ही सम्भव है। सामायिक मुक्ति मार्ग का आवश्यक पड़ाव है । अगर सम भाव रूप सामायिक की प्राप्ति नहीं हई है तो कोई व्यक्ति चाहे कितना ही तप तपे, कितना ही जप जपे, कितना ही स्थूल चारित्र (क्रिया काण्ड) पाले, मुक्ति की प्राप्ति के लिए सब व्यर्थ है। इस समता रूप सामायिक के विना न तो अतीत में किसी को मोक्ष प्राप्ति हुई है न वर्तमान में कोई जा रहा है और न ही भविष्य में ऐसा होगा। . . ___ सामायिक का साधक आध्यात्मिक विकास के क्षेत्र में पहली पंक्ति का सैनिक है । उसकी वरावरी न तो दानी और न ही तपस्वी कर सकता है । वह उन सब से आगे है । जिनवाणी का दिव्य आघोष सुनिये, समझिए यह स्पष्ट रूप से सामायिक का महत्व प्रतिपादित कर रहा है तथा इसको : अन्य कार्यों से श्रेष्ठतम सावित कर रहा है __'दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवण्णस खंडियं एगो । एगो पुरण सामाइयं, करेइ न पहुप्पए तस्स ।।' __एक ओर एक व्यक्ति मुक्त हस्त से लाखों का दान करने वाला है जो नित्य प्रति एक लक्ष स्वर्ण मुद्रायों का दान करता है और दूसरी ओर एक व्यक्ति है जो मात्र दो घड़ी सामायिक करता है तो दोनों में से सामायिक वाला श्रेष्ठ व्यक्ति है। लक्ष मुद्राओं का दान एक सामायिक की भी समानता नहीं कर सकता। सामायिक - सूत्र / ७४
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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