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________________ • सामायिक : संक्षिप्त परिचय - जैन साधना क्षेत्र में सामायिक का एक वहत ही विशिष्ट स्थान है। क्या श्रमण और क्या श्रावक, सभी इसके पाराधक होते हैं । श्रावक-व्रतों में यह नवमा व्रत है व श्रमणों के लिये तो संयम का दूसरा नाम ही 'सामायिक है। सामायिक बहुचर्चित शब्द है । कौन व्यक्ति सामायिक को नहीं जानता ? आये दिन हम यह शब्द श्रवण करते रहते हैं। ....फिर भी सहज प्रश्न उठता है कि इस बहुप्रचलित शब्द का क्या अर्थ है ? सामायिक क्या है ? सामायिक . का व्यवहारिक प्राशय एकांत स्थान में शुद्ध प्रासन विछा कर, शुद्ध वस्त्र अर्थात् अल्प हिंसा से निर्मित सादा वस्त्र-परिधान कर, दो घड़ी तक 'करेमि भंते' के पाठ से सावध व्यापारों का परित्याग कर सांसारिक झंझटों से विमुख हो अध्ययन, चिंतन, मनन या ध्यान और जप प्रार्थनादि करते बैठना है। यह आशय सामायिक की बाह्य झांकी प्रस्तुत करता. है । सामायिक के अंतर की ओर दृष्टिपात करना हो तो वह भी इस शब्द में ही सन्निहित है। .... सामायिक में दो शब्द हैं-सम+पाय । सम् का तात्पर्य है राग-द्वेष रहित मनःस्थिति और आय का अर्थ है लाभ । अर्थात् सामायिक राग-द्वेष . रहित मनःस्थिति की प्राप्ति का साधन है । इसे अन्य शब्दों में समभाव · भी कहा जा सकता है । सामायिक की परिभाषा करते हुए आचार्य हरिभद्र ने कहा है- . .: . . 'समभावो सामाइयं, तरण-कंचरण-सत्तुमित्त-विउसत्ति । . रिणरमिसंगं चित्त', . उचिय-पवित्तिप्पहाणं च ॥' . अर्थात् समभाव ही सामायिक है । चाहे तृण हो या कंचन, शत्रु हो या . मित्र, सर्वत्र मन को रागद्वेष-ग्रासक्ति रहित रखकर उचित धार्मिक प्रवृत्ति करना ही समभाव की प्राप्ति रूप सामायिक है। ... यही प्राशय निम्न पद में दोहराया गया है- . ... ___ 'समता सर्व-भूतेषु, संयमः शुभ-भावना। ... . : आर्त रौद्र-परित्यागस्तद्धि सामायिकं व्रतम् ।। अर्थात् सब जीवों पर समान भाव.-मैत्रीभाव रखना, संयम व अंतर्ह दय में शुभ भावना तथा प्रातरौद्रादि कुध्यानों का त्याग ही सामायिक व्रत है। सामायिक - सूत्र /७१
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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