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________________ सामायिक का दोष है। ऐसा करने से सामायिक में राग एवं मोह की वृद्धि होती है, अतः यह सामायिक का दूसरा दूषण है। . . ... ३. लामत्थी (लाभार्थ)-सामायिक करने से सांसारिक धन-जन आदि का लाभ होगा, मुकदमे में जीत हो जाएगी यादि लाभ के लिए सामायिक करना भी व्रत का दूषण है। ... ४. गव्व (गर्व)-सामायिक की साधना करना आत्महित के लिए है, उससे यह समझना कि मैं बहुत बड़ा धर्मात्मा हूँ। मैं इतनी सामायिकें करता हूँ। मेरे वरावर शुद्ध सामायिक करने वाला और कौन है ? इस प्रकार के भाव लाना या अहंकार से सामायिक करना गर्व दोष है। ...... भय-राज भय या शिक्षक आदि के दण्ड भय से बचने को सामायिक करना भय दोष है। ६. नियारपत्थी (निदान)-सामायिक करके प्रतिफल में किसी पदार्थ, ऐश्वर्य या सुख की अभिलाषा करना चिन्तामणि रत्न को कोड़ियों के वदले वेचना है । अनजान साधक सामायिक के वदले सांसारिक भोगविलासों की कामना कर इस अखूट वैभव को व्यर्थ ही गंवा देता है। यह निदान दोष है। . .७. संसय (संशय)- मानसिक दृढ़ता व श्रद्धा की कमी के कारण सामायिक करते हुए भी इसकी महत्ता पर सर्वसाधारण-को विश्वास नहीं हो पाता । मन में सदा एक सन्देह सा बना रहता है कि न जाने इसका फल. प्राप्त होगा या नहीं । सामायिक करते-करते इतने दिन बीत गये पर अभी तो फल विशेष की प्राप्ति नहीं हुई। फिर भला अब क्या मिलेगा, ऐसे भाव लाकर सामायिक की महत्ता में सन्देहात्मक स्थिति उत्पन्न करना संशय दोष है। ८. रोस (रोप)-लड़ाई झगड़ा कर या रूठ कर सामायिक लेकर बैठना यह रोप दोष है । क्रोव की स्थिति में समत्व की प्राप्ति नहीं हो सकती और समता के बिना सामायिक भी नहीं हो पाती। . प्रविणो (अविनय)-देव, गुरु, धर्म व सामायिक व्रत के प्रति आदर भाव न रख कर उपेक्षित भाव रखना अविनय दोष है । १०. अबहुमारण (अवहुमान)-अनुत्साहपूर्वक वेगारी की माफिक सामायिक करना अबहुमान है, व्रत का अपमान है । कुली की तरह सामायिक को एक असहनीय भार समझना, कब समय व्यतीत हो और इससे सामायिक - सूत्र / ६७
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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