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________________ ___३. बोहिलाभ दितु-भक्त भगवान के समक्ष धर्म प्राप्ति के लाभ से लाभान्वित होने की अभिलाषा अभिव्यक्त करता है । सच्चा साधक किसी भौतिक सामग्री की नहीं वरन् धर्म जैसी अमूल्य आत्मिक पदार्थ की ही इच्छा करता है। उसे चाह है तो धर्म की । भगवान की स्तुति कर उनसे सांसारिक सुख सम्पत्ति व ऐश्वर्य की अभिलाषा करना भगवान की भक्ति नहीं वरन् एक सौदा मात्र है। सच्चा भक्त ऐसा कभी नहीं करता। ४. समाहिवर मुत्तमं दितु-फिर भक्त उत्तम समाधि की इच्छा अभिव्यक्त करता है। समाधि का सामान्य प्राशय चित्त की एकाग्रता से है। जव साधक का हृदय इतस्ततः के विक्षेपों से परे हो, अपनी स्वीकृत साधना के प्रति एक रूप हो वासना, विकारों व कपायों का भान ही भूल जाय तो यही सच्ची समाधि है। यह उच्च दशा की प्राप्ति मनुष्य का अभ्युदय कर अंतरात्मा को पवित्र बनाती है । प्रभु के चरणों में अपनी साधना के प्रति सर्वथा उत्तरदायित्वपूर्ण रहने की मांग कितनी अधिक सुन्दर है ! कितनी अधिक भावभरी है! ... ५. सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु-हम सव का अंतिम उद्देश्य सिद्धि प्राप्ति है । अतः भक्त अन्त में यह अनुनय करता है कि सिद्ध प्रभु मुझे सिद्धि प्रदान करें। यद्यपि प्रभु स्वयं कुछ देते-लेते नहीं हैं तथा न ही सिद्धि देनेलेने की वस्तु है पर भक्ति की भाषा में ऐसा कह कर भक्त अपनी अटूट श्रद्धा व अपूर्व निष्ठा अभिव्यक्त करता है । सिद्धं मुझे सिद्धि प्रदान करें. ऐसा आशय लेने की अपेक्षा यह आशय अधिक युक्तिसंगत होगा कि सिद्धों के आलम्वन से मुझे सिद्धि प्राप्त हो। प्रश्न-१ इस पाठ का दूसरा नाम क्या है और क्यों ? उत्तर इस पाठ का दूसरा नाम चतुर्विंशतिस्तव है क्योंकि इसमें चौवीस तीर्थंकर भगवान की स्तुति की गयी है। प्रश्न-२ प्रस्तुत सूत्र में 'महिया' शब्द आता है जिसका अर्थ है पूजित; तीर्थंकर __ भगवान किस प्रकार पूजित हैं ? क्या पुष्पों द्वारा उनका पूजन होता है। उत्तर उपर्युक्त वणित 'महिया' पर से द्रव्य पूजन का प्राशय नहीं है। तीर्थंकर तो देवाधिदेव हैं । सामान्य मुनिराज के सम्मुख जाते हुए . भी पांच अभिगम पालन करने का विधान है, जिनमें से प्रथम . सचित्त त्याग वताया है। फिर तीर्थकर तो विशिष्टतम साधु हैं। वे तो अहिंसा के अवतार हैं, उनके लिए पुष्प-पूजन का सवाल ही शेष नहीं रहता । जैसा देव हो वैसा ही पूजन किया जाता है जिसको जिस वस्तु से अत्यधिक प्रेम हो, उसको वही - वस्तु भेंट सामायिक - सूत्र / ४२
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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