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________________ अरिहंत भगवान के बारह विशिष्ट गुण होते हैं जो निम्न हैं-अशोकवृक्ष १, पुष्पवृष्ठि २, दिव्य ध्वनि ३; चामर ४, स्फटिक सिंहासन ५, भामण्डल ६, देवकुंदुभि ७ एवं एक दूसरे पर तीन मनोहर छत्र ८ । आठ मंदों को गालने से प्राप्त इन आठों विभूतियों को पाकर भी अरिहंत महाप्रभु इनमें राय नहीं करते हैं, यह 'गुण है । ये अाठ गुण पाठ प्रतिहार्य कहलाते हैं, क्योंकि प्रतिहारों (राजा का सेवक) की तरहं ये साथ रहते हैं इन पाठ गुरगों के अतिरिक्त चार गुण निम्न हैं। अनन्त ज्ञान ६, अनन्त दर्शन १०, अनन्त चारित्र ११,एवं अनन्त बलवीर्य. १२। - २. सिद्ध-जिन महान् आत्माओं ने अपना कार्य सिद्ध कर लिया है वे ही सिद्ध हैं । अात्मा का निजी कार्य क्या है-आत्मा पर जो कर्म का मल लगा हुआ है और जो अपने असली स्वरूप को पहिचान ने में वाधक हैं उनको दूर कर आत्मा का वास्तविक स्वरूप प्राप्त करना ही आत्मा का स्वकार्य है । आत्मा का असली स्वरूप अरूपी, अविनाशी, अजर, अमर, ज्ञानस्वरूप एवं ग्रानन्दरूप है। वैसे स्वरूप की प्राप्ति करने वाले. ही सिद्ध हैं । सिद्ध परमात्मा पन्द्रह प्रकार से सिद्ध गति प्राप्त करते हैं-- .. - तीर्थ सिद्धा १, अतीर्थ सिद्धा २, तीर्थंकर सिद्धा ३, अतीर्थंकर सिद्धा ४, . स्वयं वुद्ध सिद्धा ५, प्रत्येक बुद्ध सिद्धा ६, बुद्धबोधित सिद्धा ७, स्त्रीलिंग सिद्धा ८, पुरुषलिंग सिद्धा , नपुसंकलिंग सिद्धा १०, स्वयंलिंग सिद्धा ११, अन्य लिंग सिद्धा १२, गृहस्थलिंग सिद्धा १३, एक सिद्धा १४ एवं अनेक सिद्धा १५ । सिद्ध भगवान के पाठ अत्यन्त विशिष्ट गुण हैं अनन्त ज्ञान १, अनन्त दर्शन २, अव्यावाघ सुख ३, क्षायिक सम्यक्त्व ४, अटल अवगाहन ५, अमूर्तपन ६. अगुरु लघु (ऊंच नीच के व्यवहार रहित) ७ एवं अनन्तवीर्य ८। । ३. प्राचार्य-ये गुरुपदं में प्रमुख हैं । आचार्य का तात्पर्य है वे महापुरुप जो स्वयं पंचाचार का पालन करते हैं तथा दूसरों से भी पालन करवाते हैं । जो संघ का संचालन करते हैं । आचार्य समस्त श्रमण वर्ग के अग्रगण्य नेता होते हैं। उनकी आज्ञा से ही संघ का व्यवहार चलता है। प्राचार्य की प्राज्ञा सर्वोपरि मानी गयी है। ये ही श्रमण संघ के प्रशासनिक कार्यों का नेतृत्व करते हैं । प्राचार्य के ३६ गुण होते हैं जो निम्न हैं-. ___ पांच प्राचार (ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार, तपाचार एवं वीर्याचार) का पालन करे और दूसरों को पालन करने का उपदेश दें; पांच इन्द्रियों के विपयों को जीतने वाले ; नववाड़ सहित ब्रह्मचर्य का पालन सामायिक - सूत्र / १२
SR No.010683
Book TitleSamayik Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanendra Bafna
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year1974
Total Pages81
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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