SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 88
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाला एवं अन्त में निर्दयता के साथ बलि होजाने वाला बकरिया अपने माप को प्रज (प्रमर ) समझता है उसी प्रकार स्वार्थ में पड़कर दुनियां को बरबाद करनेवाला एवं सहज में कालके गाल में चला जानेवाला यह संसारी जोव है इसके सिवा और कौन ऐसा मूर्ख हो सकता है ? अपमरेद्यमलुब्धकहम्नतः न नृशरीरमिदं च गनम्नतः । अनिनिगृटपदं म पुनः कुनश्चतुरशीतिकलाभवेष्वतः ।८। ___प्रथ-चौरासी लाख योनियों में जिसके रहस्य को कोई नहीं पा सकता ऐसो छुपी हुई अवस्थावाले इस नर शरीर को पाकर भी यह संसारी प्रारगोरूप बकरिया प्रगर कालरूर बहेलिये के हाथ से बचता हुवा न रह सका तो फिर कहां बचेगा ? भवति हन्त हती विषयाशयाऽत्र च वहिर्गतवन्तुनि अन्वयात् इनरथा तु नदीयकरार्पण-परिचयोऽपि भवेद्विकलक्षणः ।९ । प्रयं-परन्तु इस मनुष्य शरीर को पाकर भी यह मूर्ख संसारी प्राणी निचला नहीं रहता अपितु यह विषयों में फंसकर बहिर्गत होता है, अपने प्रापको मूल जाता है, मगर ऐसा न हो तो फिर यमराज का वार इसपर बिलकुल न हो पावे, बाल बाल बचा रहे। जयतु शूर इनः म्मरमायकं यमममुं खलु संमृनिनायकं । किमपरंगधिकाधिककातविषयतापममुन्थवृषातुरः ।।१०।। - इतर पदार्थों को चाह करना उसी का नाम काम है पोर यह काम हो जिसका प्रपूर्व वारण है उस संसतिके स्वामी यम
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy