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________________ ५२ क्या हाल हो इस पर भी जर। दृढ़ चित्त वाले को विचारना हो चाहिये। गगनो हि विषयेय निबन्धः सम्भवेद्यत इयानयमन्धः बम्य हानिमपिनानुविधन येन किं प्रणिगदानि महत्तं ।६। प्रयं-परन्तु यह मनुष्य मनुष्य होकर भी विषयोंमें लुभा रहा है ताकि इस प्रकार अन्धा हो कर उनमें फंसा रहता है उनके द्वारा होती हुई प्रपनी स्पष्ट हानि को भी नहीं देखा करता बस इससे प्रषिक मै तुझमे क्या कहूं? हम्निनं झपमलिं च पनङ्ग नागमेकविषयाद् धृतभङ्ग यामि चेन मकन्नेन्द्रियभोग-भोगिनोनुरिह कोऽस्तु नियोगः।७। प्रयं-हे वाम हम देखते है कि हाथी, मछली, भौरा, पतंग, मोर मपं ये सब स्पटनारिक एक एक इन्द्रिय के वशीभूत होकर हो जब अपना इस प्रकार नाश कर लेते हैं तो फिर पाँचों ही इन्द्रियों के विषयों को भोगने में लगे रहनेवाले इस मारमो को क्या दशा होगी? त्यागतम्वनुभवेदनपायं कंम पंजरगकीर वायं । मुच्यमान इह मञ्चणकानां कुम्भवद्ध कपिवच्चनिदानात् ।८। प्रपं-यह जीव उस पिंजड़े में बन्द हये तोतेके समान या भूगों के घर पर जाकर भूगड़ों को हो ग्रहण करने से पकड़े जाने. वाले बन्दर के समान अन्तमे त्याग करने से ही प्रापत्ति से मुक्त होता है।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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