SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ प्रत्युत बाध्य होकर वह सर्प उस अग्नि में गिरकर भस्म होगया या मरकर वह उसो नगर के समीप के बन में पापके कारण चमर मृग हवा। महीमहेन्द्रोऽगनिधोषमद्विपः बभूव यच्छोकरशादिहाविपत् । उम: म्बकीयं मुहगतगतदाऽपि गमदत्तान्मदशा वशंवदा ।१५। मर्थ-राजा भी मरकर प्रशनिघोष नाम का हाथो हुवा, इधर रामदाना उम के शोकमें अपनी उम शोचनीय दशापर विचार करते हुये अपनो छातो कूट कूटकर रोने लगो और बहुत दुःखो अथकदा दान्न हिरण्यसम्मति-नमायिकाभ्यां प्रनिवाधिना मनी । गताऽऽयिकान्वं गुणिमम्प्रयांगतः गुणाभवेदेव जनोऽवनाविनः।१६ पर्थ- अब कुछ दिन बाद इमको दान्तमति और हिरण्यवतो नाम को दो प्राविकाओं का समागम होगया उन्होंने इमे ममझाया तो यह भी उनके पास प्रायिका बन गई सो ठोक है कि इम भूतल पर गुणवानका संयोग पाकर प्रबगुग्गो प्रादमी भी गुणवान बन जाता है। म सिंहनन्द्रोनृपनामृपावृतश्चपूर्णचन्द्री युवाजनां गतः ।। मुखन कालं कतिचिद् व्यतीत गानाध्यगान पूर्णविधमुनिमहान १७ मी-राजाके मरजाने पर सिंहचन्द्र को राजा और पूर्णचन्द्र को युवराज बनाया गया एवं दोनों का समय मुम्ब से बोलने लगा तब फिर एक रोगविधु नामके मुनिका इधर पाना होगया ।
SR No.010675
Book TitleSamudradatta Charitra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansagar
PublisherSamast Digambar Jaiswal Jain Samaj Ajmer
Publication Year
Total Pages131
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy