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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements 'लक्षणावली' के कई भाग कोष ग्रंथ का काम देते हैं। 'युगवीर भारती' में उनकी हिन्दी रचनाओं का अच्छा संग्रह है और 'मेरी भावना' एक अकेली ही कृति ने उन्हें अजर-अमर बना दिया है, जिसका प्रकाशन लाखों की संख्या में हुआ है तथा वह अनेकों भाषाओं में अनूदित हुई है। पं. आशाधर जी विरचित ! ' अध्यात्म रहस्य' का हिन्दी अनुवाद और प्रस्तावना महत्वपूर्ण है । श्री रामसेनाचार्य प्रणीत तत्वानुशासन (ध्यानशास्त्र) का हिन्दी अनुवाद और मौलिक गवेषणात्मक प्रस्तावना भी अनुसंधित्सुओं को लाभदायक है। 20 मुख्तार सा. की विशेषता थी कि वे प्राचीन हस्तलिखित पोथियों और गुटकों की तलाश में रहते थे और जो कोई उत्कृष्ट कृति मिल गई, उसकी अन्य दूसरी प्रति विभिन्न भंडारों से मंगाते और उनका गंभीर अध्ययन कर तुलानात्मक पाठ भेद ढूंढ़ते, फिर शुद्ध पाठ को स्वीकार कर उसका अनुवाद करते और अनुवाद के समय ग्रन्थांतर, आचार्य, ग्राम, राजा, श्रावक आदि का उल्लेख मिलता तो उसी आधार पर खोज-शोधकर विस्तृत मौलिक प्रस्तावना लिख डालते। वे प्राय: वी. से मं. की आर्थिक स्थिति सुधारने हेतु पर्यूषण पर्व, महावीर जयंती, आष्टान्हिका आदि के समय विशिष्ट निमंत्रण पर प्रतिष्ठित व्यक्तियों की सद्भावना को परख कर शास्त्र प्रवचन हेतु जाते ओर वहां के शास्त्र भंडार टटोलते और कोई-कोई नवीन ग्रंथ ढूंढ लाते। इस तरह उनके पास हस्तलिखित पांडुलिपियों का बड़ी मात्रा में संकलन हो गया था जो वी.से.मं में अभी विद्यमान है। एक बार कानपुर के प्रसिद्ध हकीम श्री कन्हैया लाल जी के आग्रह पर शास्त्र प्रवचन हेतु कानपुर पधारे, हकीम जी के मकान के नीचे एक पंसारी की दुकान थी, जब वे मंदिर जी के लिए जा रहे थे तो उन्होंने पंसारी को एक हस्तलिखित ग्रंथ के पन्ने फाड़कर उनमें सोंठ, हल्दी, मिर्च की पुड़िया बनाते देखा, उनकी पैनीदृष्टि ने ताड़ लिया कि कोई महत्वपूर्ण कृति होनी चाहिए। वे तुरन्त ही पंसारी के पास जाकर हाथ जोड कर बोले भैया यह तो जिनवाणी है, जिसकी आप यह दुर्दशा कर रहे हो। मैं तुम्हें पुड़िया बांधने के लिए बहुत से अखबार लाकर देता हूँ। तुम यह सारा बस्ता मुझे दे दो और कुछ कीमत लेना चाहते हो तो वह भी ले लो। पंसारी भोला था और हकीम जी का
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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