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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Actievements विद्वज्जन सुदूर क्षेत्रों से नाना मार्ग की कठिनाईयों को भी सहनकर एक ही आदेश पर एक ही आवाज पर खिंचे चले आते हैं। उनका व्यक्तित्व अभीक्षणज्ञानोपयोग एवं आगमानुकूल प्रशस्त चर्या से समन्वित है। उपरोक्त पं. मुख्तार विषयक संगोष्ठी को मैं ज्ञानसागर जी का ज्ञानयज्ञ' मानता हूँ। इस महान् आयोजन में उनके द्वारा निर्देशित रूप में आयोजकों ने विद्वानों के विधिवत व्यवस्था के परिवेश में जो ज्ञान की आहुतियों हेतु सामग्री जुटाकर महान् पुण्य कार्य किया है। इसमें निर्धारित 8 सत्रों में देश के विभिन्न चोटी के विद्वानों ने मुख्तार विषयक आलेखों का वाचन कर एक भूले-बिसरे ज्ञान-प्रतिनिधि को समाज के सम्मुख प्रस्तुत किया गया है। यह स्तुत्य प्रयास है। प्राचार्य शीतलचन्द जी के कुशल संयोजकत्व में आयोजित संगोष्ठी आगामी काल के विभिन्न ग्रन्थों के प्रकाशक, आर्षमार्ग के प्रचार-प्रसार हेतु मील का पत्थर सिद्ध होगी। ऐसा मेरा विश्वास है। इस अवसर पर पू. महाराज की प्रेरणा से सर्वतोभद्रमहामण्डल विधान की समष्टि से दर्शन-ज्ञान-चारित्र का समन्वित रूप प्रकट हुआ। भक्ति के संयोजक से प्रस्तुत ज्ञानयज्ञ शोभा को प्राप्त हुआ है। निष्कर्ष यह है कि यह संगोष्ठी विद्वद्वर्ग को समाज में सम्मानित एवं गौरवान्वित रूप में स्थापित करने का सामयिक प्रयत्न है। मुख्तार साहब की यशोगाथा तो यहाँ गाई ही गई साथ ही वर्तमान के जैन वाङ्मय के दधीचि, जिन्होंने अपनी हड्डियाँ गलाकर भी जैन वाङ्मय को पुष्ट किया एवं विशाल साहित्य की रचना, संरचना की। परमादरणीय डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल, जयपुर को 'अभिनन्दन ग्रन्थ' समर्पित कर सम्मानित किये जाने से प्रस्तुत 'ज्ञान-यज्ञ' में चार चांद लग गये हैं। यह मात्र उनका नहीं सभी विद्वानों का सम्मान हैं। इस समस्त आयोजन के केन्द्र प. पू. १०८ उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज को शतशः नमन। 5. डॉ. स्नेहरानी जैन, नेहानगर, सागर श्री राजकुमार जी मलैया, स्टेशन रोड भगवान गंज, सागर, म प्र. 470002
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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