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________________ Xxvn पं. गुगलकिसोर मुखावर "चुपवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व का आयोजन, युगवीर जी के साहित्यक जीवन के मूल्यांकन का एक महत्वपूर्ण आयाम है। परमपूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज ज्ञान के स्वाध्याय में लीन रहने वाले प्रेरणापुञ्ज गुरु हैं। ज्ञान, ध्यान और तप में लीन रहते हुए भी विद्वत्समुदाय से विधानुराग रखते हैं। स्वयं उपाध्याय श्री विद्वत्समुदाय को अपनी आदरास्पद उपस्थिति से अनुगृहीत कराते हैं। आपका पावन सान्निध्य पाकर गोष्ठी अपनी सार्थकता को प्राप्त होती है। आपको नमन्॥ उक्त संगोष्ठी के संयोजक डॉ. शीतलचन्द्र जी जैन साधुवाद के पात्र हैं। जिन्होंने अपने अथक प्रयत्नों से यह आयोजन किया है। डॉ. रतनचन्द्र जैन 137, आराधनानगर, भोपाल, 462003 परमपूज्य १०८ उपाध्याय ज्ञानसागर जी महाराज एक सरल, आगमचक्षु, आगमानुसार चर्यावाले, संयमी, तपस्वी एवं विद्वत्प्रेमी साधु हैं। उनकी प्रेरणा से अनेक विद्वत्संगोष्ठियों सफलतापूर्वक सम्पन्न हुई हैं। विद्वद्वर्ग उनकी प्रेरणा से ग्रन्थों के स्वाध्याय, समीक्षा एवं सम्पादन में संलग्न होकर अपने ज्ञान का वर्धन का सराहयनीय कार्य कर रहा है। उपाध्यायश्री से जैन समाज को उन्नति एवं जिनवाणी की प्रभावना को प्रचुर आशाएँ हैं। डॉ. (श्रीमती) रमा जैन, सेवा निवृत्त प्रोफेसर हिन्दी 81 छत्रसाल रोड, विद्यार्थी भवन, बेनीगंज छतरपुर-471001 (म. प्र.) सराकोद्धारक, उदान्त चिन्तन की उर्जस्वी धारा को प्रवाहित करने वाले, दूरदर्शी आत्मसाधक पूज्य उपाध्याय १०८ ज्ञानसागर जी ख्याति, लाभ, पूजा नाम आदि की कामना से मुक्त, उच्चकोटि के सन्त हैं। पुस्तकों के माध्यम से मैं उन्हें १९९२ से जानती थी, किन्तु आज ३०.१०.९८ को साक्षात् दर्शन कर अत्यन्त हर्ष हुआ। मैं आपकी प्रेरणास्पद, हृदयग्राही प्रवचन शैली और सहज, सरल, वात्सल्यमयी वाणी से बेहद प्रभावित हुई। धन्य हैं ऐसे सन्त।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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