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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements डॉ नेमिचन्द्र शास्त्री ने उनके विषय में लिखा है कि वे अपने अध्ययन और मनन द्वारा जिन निष्पत्तियों को ग्रहण करते थे उन्हें पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित करने के लिए भेज देते थे। निबंध लिखना और मौजी बहार में आकर कविता लिखना उनके दैनिक कार्य थे। 318 पं. मुख्तार जी ने अपने समय मे शधिब्दिक अनुसंधानपरक तथा नये तथ्यों से युक्त निबंध लिखे जो विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए । अनेकान्त जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका के तो वे सम्पादक और प्रतिष्ठापक ही नहीं अपितु प्राण थे। इसमें आपके सम्पादकीय के अतिरिक्त अनेक निबन्ध ग्रन्थ समीक्षायें तथा शोधात्मक टिप्पणियाँ भी नियमित प्रकाशित होती थी । अनेकान्त पत्रिका का जैनधर्म, साहित्य और संस्कृति के विकास में जो योगदान है, उसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। इसके पुराने अंक देखने पर इन तथ्यों की यथार्थता अपने आप सामने आ जाती है। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आपके द्वारा लिखित शोध-परक एवं समसामयिक निबन्धों का संग्रह 'युगवीर निषन्धावर्ण' नाम से दो खण्डों में प्रकाशित है। इनमें वैयक्तिक निबन्धों के अतिरिक्त समाज सुधारात्मक एवं गवेषणात्मक निबन्ध भी है। प्रथम खण्ड में ४१ और द्वितीय खण्ड में ६५ निबन्धों का संकलन है। इन निबंधों में इनके लेखकाल का सामाजिक, साहित्यिक एवं प्रवृत्तिमूलक इतिहास देखने को मिलता है। इस निबंधावली द्वितीय खण्ड में उत्तरात्मक, समालोचनात्मक, स्मृति परिचयात्मक, विनोद शिक्षात्मक एवं प्रकीर्णक इन विषयों के जिन ६५ निबन्धों का संकलन है, उनमें प्रकीर्णक निबन्धों के अन्तर्गत १२ निबन्ध है, जो प्रायः सामाजिक, शास्त्रीय एवं सैद्धान्तिक मतभेदों के शमन हेतु समाधान रूप में लिखे गये हैं । प्रकीर्णक निबंधों में आरम्भिक तीन निबंध इनके समय में बड़े चर्चित विषयों से संबंधित है। इनमें प्रथम है क्या मुनि कन्दमूल खा सकते हैं ? दूसरा है क्या सभी कन्दमूल अनन्तकाम होते हैं ? वस्तुतः हमारे आगमों में श्रावक और श्रमणों के आचार-विचार संबंधी विषयों का स्पष्ट विवेचन मिलता है। किन्तु समय-समय पर उनका पूर्वापर सम्बन्धरहित अर्थ किया
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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