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________________ प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व 297 समान हैं । मुनिवेष को धारणकर उसे लजाना उन्हें इष्ट नहीं। अनगारी बनकर मंदिर - मकानों में निवास करना भी उन्हें पसंद नहीं। उनके प्रवचन सुनकर जनता आत्मविभोर हो जाती है। मुमुक्षु जन दूर देशों से प्रवचन सुनने आते हैं। सुनने से तृप्ति नहीं होती तो घर पहुँचकर उन्हें पत्र लिखते हैं। मुख्तार जी की इस संत के प्रति हार्दिक भावना रही है कि आपको अपने ध्येय में शीघ्र सफलता की प्राप्ति होवे और आप अपनी आत्मसिद्धि करते हुए दूसरों की आत्मसाधना में सब प्रकार से सहायक बनें। निःसन्देह पूज्य वर्णी जी इस बीसवीं शताब्दी के अद्वितीय सन्त थे । तीसरा निबन्ध है - 'शाह जवाहरलाल और जैन ज्योतिष' श्री शाह प्रतापगढ़ के वैद्य थे। आपके पत्रों से मुख्तार जी ने इन्हें विनम्र और निरभिमानी बताया है। अपनी त्रुटियों को समझना, भूल को सहर्ष स्वीकार करना और भूल बतलाने वाले के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करना - जैसे आप में उदार गुण रहे हैं। परोपकार और साहित्यसेवा की आप में लगन थी । जैन ज्योतिष के क्षेत्र में त्रैलोक्य प्रकाश की भाषा वचनिका लिखी है, भद्रबाहु निमित्त शास्त्र के कुछ अध्यायों का अनुवाद और लोक विजययंत्र की टीका भी की थी। हुंवड जाति के महाजन होकर उन्होंने जो साहित्य सेवा की है मुख्तार जी ने उसके प्रति शुभ भावना व्यक्त की है। हेमचन्द्र-: ६- स्मरण नामक चौथे निबंध में पं. नाथूलाल जी प्रेमी के पुत्र हेमचन्द्र का स्मरण किया गया है। उसे मुख्तार जी बहुत चाहते थे। उसके बचपन की एक घटना का भी निबंध में उल्लेख हुआ है। हेम के चाचा लालटेन की चिमनी साफ कर रहे थे। चिमनी हाथ में चुभ गयी, वे सिसकने लगे । हेम ने यह घटना मुख्तार जी से निवेदित की। मुख्तार जी ने हेम के विनोदार्थ घटना की तुकबन्दी कर दी और कहा अपनी चाची को जाकर सुनाना - - काका तो चिमनी से डरत फिरत हैं, काट लिया चिमनी ने 'सी-सी' करत हैं ।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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