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________________ - प जगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व कुंजी है। इस ग्रंथ का अपरनाम"योगोद्दीपन-शास्त्र" है। ग्रंथ की रचना वि. सं. 1300 के आसपास हुई और इसका अनुवाद तथा व्याख्या लिखने का कार्य जैनदर्शन, साहित्य एवं इतिहास के चिंतक विद्वान् पं. जुगलकिशोर मुखतार जिनका कवि के रूप में "युगवीर" नाम भी प्रचलित था, ने वि. सं. 2014 में सम्पन्न किया। पं. आशाधरजी ने 72 श्लोकों वाले इस छोटे से ग्रंथ में अध्यात्म का सार गागर में सागर के रूप में भर दिया है। उन्होंने इस ग्रंथ की रचना अनगार-धर्मामृत और सागर-धर्मामृत जैसे ग्रंथों को लिखने के बाद की है इससे इस ग्रंथ में उनके चिंतन का वैशिष्ठय छलकता हुआ दिखाई पड़ता है। पंडितप्रवर ने आचार्य पूज्यपाद के ग्रंथों का विशेषरूप से अध्ययन-मनन किया होगा, क्योंकि अध्यात्म-रहस्य में समाधितंत्र की छाप स्पष्ट परिलक्षित होती है। आचार्य पूज्यपाद के प्रसिद्ध ग्रंथ "इष्टोपदेश" पर तो आपने संस्कृत में टीका भी लिखी थी। अध्यात्म-रहस्य ग्रंथ के विषय में स्वयं पं आशाधर जी ने अनगारधर्मामृत की टीका की प्रशस्ति में यह श्लोक लिखा है - आदेशात् पितुरध्यात्म-रहस्यं नाम यो व्यधात । शास्त्रं प्रसन्न-गंभीरं प्रियमारब्धयोगिनाम् ॥ अर्थात् अध्यात्म-रहस्य नाम का यह शास्त्र अपने अध्यात्म रसिक पिता के आदेश से लिखा है तथा यह ग्रंथ प्रसन्न, गंभीर और योगाभ्यास करने वालों के लिये प्रिय है। मेरे इस आलेख का विषय ग्रंथ के भाष्य और भाष्यकार से संबंधित है अतः मैं उसकी चर्चा ही विशेष रूप से करना चाहूंगा। अध्यात्म रहस्य का भाष्य पढ़ने से पूर्व हमें भाष्यकार पं. जुगलकिशोर मुख्तार की लम्बी प्रस्तावना पढ़ने को मिलती है। पंडितजी प्रस्तावना लेखन में सिद्धहस्त थे, अपने सभी सम्पादित ग्रंथों में उन्होंने लम्बी प्रस्तावनायें लिखी हैं। इनके लिखनेमें उन्होंने जो श्रम किया है, वह ग्रंथ के अनुवाद में हुए श्रम से कम नहीं है।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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