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________________ 251 प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एव कृतित्व अति सुकर हो गया है। प्रस्तावना की भाषा सरल, प्रौढ और भावोद्वेलक है। ग्रन्थ के सम्पादन एवं प्रस्तावना की गहन अनुसन्धानात्मक बहुआयामी छवि का अवलोकरन करने से वाङ्मयाचार्य पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार 'युगवीर' एक सिद्धहस्त ग्रन्थसम्पादक एवं प्रस्तावनालेखक के रूप में सामने आते हैं। सन्दर्भ 1 प जुगलकिशोर जी मुख्तार : कृतित्व एवं व्यक्तित्व - डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री, पृष्ठ 78 2 समाधितन्त्र-प्रस्तावना, पृष्ठ 1 3. वही पृष्ठ 2 वही, पृष्ठ 2 5 वही, पृष्ठ 9 6 वही, पृष्ठ 10 7 वही, पृष्ठ 10 8 वही, पृष्ठ 10-11 १ श्लोक, 3 10 नियमसार गाथा १०२ तथा मोक्षप्राभृत गाथा ५९ 11 समाधितन्त्र-प्रस्तावना, पृष्ठ 12-13 आत्मानं तन्मयं ध्यायन् मूर्ति संपूजयेद्धरेः।। अपने आपको भगवन्मय ध्यान करते हुए ही भगवान की मूर्ति का पूजन करना चाहिए। -भागवत (११३५४) हिन्दू ध्यावै देहुरा मुसलमान मसीत। जोगी ध्यावे परम पद जहँ देहुरा न मसीत ॥ -गोरखनाथ (गोरखबानी, सबदी, ६८) कबीर दुनियाँ देहुरै, सीस नवाँवण जाइ। हिरदा भीतर हरि बसै, तू ताही सौं ल्यौ लाइ । -कबीर (कबीर ग्रन्थावली, पृ.४४)
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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