SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 294
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 243 - - प जुगलकिसोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एप कृतित्व श्रवणबेलगोला के शकसंवत् 1355 के शिलालेख के आधार पर मुख्तार जी ने पूज्यपाद स्वामी के चामत्कारिक गुणों का भी प्रकाशन किया है। यथा, वे अद्वितीय औषधऋद्धि के धारक थे, विदेहक्षेत्रस्थित जिनेन्द्र भगवान् के दर्शन से उनका गात्र पवित्र हो गया था और उनके चरण-धोए जल के स्पर्श से एक समय लोहा भी सोना बन गया था। इन शिलालेखीय उल्लेखों तथा पूज्यपाद स्वामी के सर्वार्थसिद्ध ग्रन्थ की लोकप्रियता से मुख्तार जी ने पूज्यपाद स्वामी के व्यक्तित्व का जो आकलन किया है वह अत्यन्त सटीक है। उसे उन्होंने निम्नलिखित शब्दों में प्रस्तुत किया है "इस तरह आपके इन पवित्र नामों के साथ कितना ही इतिहास लगा हुआ है और वह सब आपकी महती कीर्ति, अपार विद्वत्ता एवं सातिशय प्रतिष्ठा का द्योतक है। इसमें सन्देह नहीं कि पूज्यपाद स्वामी एक बहुत ही प्रतिभाशाली आचार्य, माननीय विद्वान्, युगप्रधान और अच्छे योगीन्द्र हुए हैं। आपके उपलब्ध ग्रन्थ निश्चय ही आपकी असाधारण योग्यता के जीते-जागते प्रमाण हैं। भट्ट अकलंकदेव और आचार्य विद्यानन्द जैसे बड़े-बड़े प्रतिष्ठित आचार्यों ने अपने राजवार्तिकादि ग्रन्थों में आपके वाक्यों का, सर्वार्थसिद्धि आदि के पदों का खुला अनुसरण करते हुए बड़ी श्रद्धा के साथ उन्हें स्थान ही नहीं दिया, बल्कि अपने ग्रन्थों का अंग तक बनाया है।" कृतियाँ मुख्तार जी ने अपनी प्रस्तावना में पूज्यपाद की कृतियों का सप्रमाण परिचय दिया है। शिलालेखों तथा ग्रन्थान्तरों में प्राप्त उल्लेखों के आधार पर जिन ग्रन्थों को उन्होंने पूज्यपाद द्वारा रचित माना है वे इस प्रकार हैं : जैनेन्द्रव्याकरण, सर्वार्थसिद्धि, समाधितन्त्र, इष्टोपदेश, सिद्धभक्ति, श्रुतभक्ति, चरित्रभक्ति, योगिभक्ति, आचार्यभक्ति, निर्वाणभक्ति तथा नन्दीश्वरभक्ति। ये सब ग्रन्थ संस्कृत में लिखे गये हैं। इनके अतिरिक्त एक आयुर्वेदविषयक ग्रन्थ वैद्यशास्त्र, एक व्याकरणविषयक ग्रन्थ शब्दावतार, एक नयप्रमाण विषयक ग्रन्थ सारसंग्रह, दो काव्यशास्त्र विषयक ग्रन्थ जैनाभिषेक एवं छन्दःशास्त्र तथा
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy