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________________ 232 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements इसी प्रकार 'जीवदिसप्ततत्त्वम्' एक दूसरे सूत्र के अभिप्राय में आदि' पद के द्वारा ही शेष तत्त्वों का उल्लेख किया है। इस सूत्र में उमास्वामी के सूत्र की अपेक्षा अल्पाक्षरता है। वस्तुतः प्रभाचन्द्र ने संक्षेपता पर ध्यान देते हुए सर्वनाम या सर्वनाम विशेषणों का प्रयोग किया है। जैसे-तदर्थ-श्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्' में तत् का अर्थ सप्त तत्व है। किसी शब्द के अर्थ को समझाने के लिए मुख्तार साहब लम्बे डेश देकर उसे समझाते हैं। जैसे-उसकी-सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति दो प्रकार से है। दोनों-तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् (उमास्वामी), तदर्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् (प्रभाचन्द्र) के क्षयोपशम (क्षय) हेतवः (हेतूनि) इत्यादि सूत्रों को शुद्ध करके कोष्ठक में लिख दिया गया है, जिससे लेखक का मूल पाठ भी रहे और उसका शुद्ध रूप भी। श्री मुख्तार सा ने दिगम्बरीय तत्वार्थ सूत्र एवं श्वेताम्बरीय तत्वार्थ सूत्र का भी जगह-जगह तुलनात्मक विवेचन किया है। यथा-आहरक प्रमत्त संयतस्यैव सूत्र के विशेषार्थ में बतलाया गया है कि 'प्रमत्त संयतस्यैव' के स्थान पर श्वेताम्बरीय सूत्र पाठ में चतुर्दश पूर्वधरस्यैव पाठ है। तीर्थेशदेवनारक भोगभुवोऽखण्डामुयुषः। उमास्वामी के तत्वार्थ सूत्र के 'औपपादिकचरमोत्तमदेहाऽसंख्येयवर्षायुषोऽनपवायुष।' का अर्थ प्रगट करता है पर उक्त प्रभाचन्द्रीय सूत्र सरल सुगम अल्पाक्षरी तथा स्पष्ट है। 'तासुनारकाः सपंच दुःखा' (सूत्र क्र.2 अध्याय 3) इसके विशेषार्थ में बताया गया है कि नारकियों के शारीरिक, स्वसंक्लेश परिणामज (मानसिक) क्षेत्रस्वभावज, परस्परोदीरित और असुरोदीरित ये पाँच प्रकार के दुःख हैं। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में वर्णित दुखों के समान हैं। तन्मध्येलक्ष योजन प्रमः सचूलिको मेरुः। इस सूत्र में जम्बूद्वीप का प्रमाण नहीं बताया, चूलिका सहित मेरु का प्रमाण एक लाख योजना है। तीसरे अध्याय के 8वें सूत्र में तस्मात की जगत
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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