SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 280
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 229 पं. जुगलकिशोर मुखार "पुगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रात:काल नित्य चार बजे जगकर वह ध्यान में बैठ जाते और अन्त में-मुझे है स्वामी उस बल की दरकार स्वरचित कविता का पाठ करते,जिसमें आत्मा के बल को प्रकट होने की कामना की गई थी। यद्यपि श्री मुख्तार साहब बहुआयामी व्यक्तित्व के साहित्यकार थे-उत्कृष्ट कोटि के भाष्यकार, समीक्षाकार, इतिहासकार,पत्रकार, निबन्धकार सम्पादक और अनुवादक थे, पर यहाँ मुझे उनके सम्पादक-अनुवादक रूप को ही प्रस्तुत करना है। उनमें भी मैं उन्हें केवल आचार्य प्रभाचन्द्र और उनका तत्वार्थ सूत्र ग्रन्थ के अनुवादकसम्पादक के रूप में ही यहां प्रस्तुत कर रहा हूँ। ___'आचार्य समन्तभद्र का तत्वार्थ सूत्र'-ग्रन्थ की प्रस्तावना बड़ी महत्वपूर्ण है। प्रस्तावना के पूर्व एक प्रावधान भी दिया गया है उसमें भी अनेक तथ्यों का उल्लेख है। बताया गया है कि पुस्तकाकार प्रकाशन से पूर्व तत्वार्थ सूत्र अनेकान्त, किरण ६ व ७ में अनुवाद पूर्वक प्रकाशित हुआ था। अनेकान्त में प्रकाशन के आधार पर भारतीय महाविद्यालय कलकत्ता ने पं. ईश्वरचन्द्र नामक किसी बंगाली विद्वान् से इसकी संस्कृत व बंगाली टीका करा कर प्रकाशित करवाया था। वीर सेवा मंदिर ने प्रस्तुत तत्त्वार्थसूत्र को अनुवाद एवं संक्षिप्त भाष्य के साथ प्रकाशित किया है। प्रस्तावना में आचार्य प्रभाचन्द्र के तत्त्वार्थसूत्र की उपलब्धि के प्रसंग के एक हृदय द्रावक घटना का उल्लेख किया है कि कोय में भट्टारक की गद्दी पर विराजमान एक भट्टारक ने अपने अज्ञान से वहां के शास्त्र भण्डार को रद्दी में बेच दिया था। कोटा के ही श्री केशरीमल जी ने उस मुसलमान बोहरे से आठ आने में बोरी भरके हिसाब से वह रद्दी खरीद ली, उसी में यह अमूल्य निधि उन्हें प्राप्त हुई। श्री केशरीमल जी से रामपुर सहारनपुर निवासी बाबू कौशल प्रसाद जी ने यह देखा और उसे अपूर्व वस्तु के रूप में श्री केशरीमल जी से प्राप्त कर विशेष जाँच-पड़ताल के लिए मेरे पास (श्री मुख्तार साहब) लाये। ग्रन्थ प्राप्ति की यह छोटी सी घटना जिनवाणी के प्रति समाज के उपेक्षा भाव को प्रकट करती है कि हमारे ही अज्ञान से हमारा अमूल्य साहित्य इस प्रकार नष्ट हो गया ऐसा एक जगह ही नहीं अनेक जगहों के मन्दिरों में जो
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy