SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 227 प जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर"व्यक्तित्व एव कृतित्व __ _227 यह पद्य टीकाकार का मंगलाचरण एवं प्रतिज्ञावाक्य है। सीम्रामित्यत्र "स्मृत्यर्थदयीशां कर्म" इत्यनेन षष्ठी। - रत्नक. श्रा.4/3 टीका तदुक्तं - स्याद्वादके वलज्ञाने सर्वतत्वप्रकाशने भेदः साक्षादसाक्षाच्च हयवस्त्वन्यतमं भवेत्॥ -रत्नक. श्रा. 2/1 टीका इस प्रकार हम देखते हैं कि रत्नकरण्डक के टीकाकार ने जो अवतरण उद्धृत किये हैं उनमें से कुछ का निर्देश स्थल तो प्राप्त होता है, परन्तु बहुतों का स्रोत अभी प्राप्त नहीं हो सका है। अतः उनकी शोध-खोज तथा प्रकाशन एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है। सन्दर्भ एवं सहायक ग्रन्थ सूची 1 रत्नकरण्डक श्रावकाचारः सटीकः। माणिकचन्द्र दि. जैन ग्रन्थमाला समिति, बम्बई, विक्रम संवत् 1882 2 नीतिवाक्यामृतम्-प्राकृतभारती अकादमी, जयपुर मोदी फाउण्डेशन,कलकत्ता, 1987 यशस्तिलकचम्पू-भाग 1-2, भारतवर्षीय अनेकान्त विद्वत् परिषद् ई. 1989-90 एवं 1992 4 पदमनन्दि उपासकाचार, (पदमनन्दि पंचविंशतिका के अन्तर्गत), जैन संस्कृति संरक्षक सघ, सोलापुर,ई 1977 5 दसवेयालियंसुत्त, जैन आगम सीरीज, 15, महावीर जैन विद्यालय, बम्बई,ई सन् 1977 6 वसुनन्दि उपासकाध्ययन (श्रावकाचार संग्रह भाग 1 के अन्तर्गत) जैन संस्कृति संरक्षक संघ, सोलापुर, ई. 1988 7. गोम्मटसार जीवकाण्ड, भाग - 2 सम्पादक - अनुवाद, डॉ ए. एन. उपाध्ये एवं पं. कैलाशचन्द्र शास्त्री, भारतीय ज्ञानपीठ, ई. 1997
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy