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________________ xii पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व की " मेरी भावना" प्रत्येक जैन धर्मानुयायी की भावना है, मेरी भावना है। इसमें सम्पूर्ण जैन धर्म का सार भरा हुआ है। तीसरे भाग में युगवीर की रचनाओं का समीक्षात्मक मूल्यांङ्कन किया गया है, इसमें उन्नीस आलेख प्रस्तुत हुए हैं । ग्रन्थपरीक्षा शीर्षक से मुख्तार सा ने उमास्वामी श्रावकाचार, कुन्दकुन्द श्रावकाचार, भद्रबाहुसंहिता आदि ग्रन्थों की परीक्षा की है। उन्होने यह भी सिद्ध किया है कि कुन्दकुन्द, उमास्वामी और भद्रबाहु के द्वारा उक्त ग्रन्थ नहीं रचे हैं, किन्तु किन्हीं स्वार्थी लोगो ने अपनी बातों को प्रभावी बनाने के लिए उनके नाम से ही ग्रन्थ रचना कर डाली। मुख्तार साहब ने पहली बार ऐसे ग्रन्थो की परीक्षा करके विद्वज्जगत् और समाज को नई दिशा दी थी। उन्होने अनेक ग्रन्थों के भाष्य लिखे । वे समन्तभद्र के तो अनन्य भक्त थे ही। अपने शोध निबन्धो के माध्यम से उन्होंने धर्म, समाज और राष्ट्र को नया प्रकाश दिया है। प्रस्तुत ग्रन्थ के आलेखो में कुछ सामग्री पुनरुक्त भी हुई है, क्योंकि लेखकीय स्वतन्त्रता सर्वोपरि है । अन्त में हम पुण्यश्लोक स्व प जुगलकिशोर मुख्तार के चरणो मे शत-शत नमन करते है । डॉ. शीतलचन्द्र जैन • डॉ. ऋषभचन्द्र जैन 'फौजदार' डॉ. शोभालाल जैन -UR -
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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