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________________ 194 9. Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements दुर्ग आचार्य की खोज करने पर ढक्कन कालेज पूना के पुस्तकालय से 'रिष्ट समुच्चय' ग्रंथ मिला है। मुख्तार साहब ने इस ग्रन्थ से भद्रबाहु संहिता का बहुत सावधान से मिलान किया और उन्होंने पाया कि दुर्ग देव द्वारा प्राकृत भाषा में रचित 'रिष्ट समुच्चय' ग्रंथ की सौ से भी अधिक गाथाओं का आशय और अनुवाद इस संहिता में कर लिया है। 'ग्रंथ-परीक्षा' के द्वितीय भाग में पृ. 30-31 पर ऐसे पद्यों को उद्धृत किया गया है। वस्तुतः 'रिष्ट समुच्चय' विक्रम संवत् 1089 की रचना है। जैसा कि उसकी प्रशस्ति के पद्य 257 से स्पष्ट है (ग्रन्थ परीक्षा पृ. 31) इस समीक्षा से स्पष्ट है कि 'भद्रबाहु संहिता' ग्रंथ न तो भाद्रबाहु श्रुतकेवली की रचना है और न ही उनके किसी शिष्य - प्रशिष्य कीं, तथा न ही विक्रम संवत् 1089 से पहले की, प्रत्युत यह विक्रम की 11वीं शताब्दी से परवर्ती समय की रचना है। जिसका रचनाकार अत्यन्त सामान्य व्यक्ति हैं। उसे यह भी ध्यान नहीं रहा कि मैं इस ग्रंथ को भद्रबाहु श्रुतकेवली के नाम से बना रहा हूँ और इसमें 1200 वर्ष पीछे होने वाले विद्वान् का नाम और उसके ग्रंथ का प्रमाण नहीं आना चाहिए | जिस प्रकार अन्य अनेक प्रकरण दूसरे ग्रंथों से लिए हैं उसी प्रकार रिष्ट समुच्चय से भी यह प्रकरण लिया है। वास्तव में भद्रबाहु संहिता विक्रम की 11वी शताब्दी से पीछे की रचना है। आचार्यकल्प पं. आशाधरकृत 'सागार धर्मामृत' के 1.14 और 2.46 ये दो पद्य 'भद्रबाहु संहिता में ज्यों के त्यों 3 / 363 और 10/72 के रूप में मिलते हैं (दे. ग्रंथ परीक्षा पृ. 33 ) ' पं. आशाधर जी का समय विक्रम संवत् 1296 है । अतः भद्रबाहु संहिता 13वीं सदी की रचना है। इसी प्रकार भद्रबाहु संहिता के तीसरे
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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