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________________ 189 - पं. गुगलकिशोर मुख्तार "बुगवीर " व्यक्तित्व एव कृतित्व पवित्र नाम संयुक्त है। कहा जाता है कि यह ग्रन्थ अर्थात् "भद्रबाहु संहिता" भद्रबाहु श्रुतकेवली द्वारा विरचित है। मनीषी समीक्षक पं. जुगलकिशोर मुख्तार "युगवीर" ने "भद्रबाहु संहिता" का अन्तरंग परीक्षण बहुत ही विस्तार के साथ किया है। प्रत्येक अध्याय के वर्ण्य विषय का निरूपण, उसका तुलनात्मक अध्ययन और परीक्षण तथा ग्रन्थ में उल्लिखित असम्बद्ध-अव्यवस्थिति और विरोधी तथ्यों का स्पष्टीकरण भी किया गया है। पं. जुगलकिशोर मुख्तार की विश्लेषणात्मक समीक्षा पद्धति से स्वयं ही ग्रन्थ का जालीपना सिद्ध हो जाता है। यह परीक्षाग्रन्थ इस तथ्य को उजागर करता है कि पं. जुगलकिशोर मुख्तार ने वैदिक और जैन वाङ्मय का गभीर अध्ययन किया है। उन्होंने ज्योतिष, निमित्त, शकुन, धर्मशास्त्र, आयुर्वेद, वास्तुविधा, राजनीति, अर्थशास्त्र एवं दायभाग का विशेष अध्ययन कर समीक्ष्य ग्रन्थ- "भद्रबाहु संहिता" का वास्तविक रूप विश्लेषित किया है। इस समग्र समीक्षण में मनीषी लेखक की तटस्थता एवं विषय प्रतिपादन की क्षमता विशेषरूप से ध्यातव्य है। इस ग्रन्थ-परीक्षा द्वितीय भाग की स्थापनाएं इतनी पुष्ट और शास्त्रीय प्रमाणों पर आधृत हैं कि सुधी पाठकों और समाज पर दूरगामी सुपरिणाम परिलक्षित हुआ। मैं बिना किसी हिचकिचाहट के यह कह सकता हूँ कि इस प्रकार के परीक्षा-लेख जैन साहित्य में सबसे पहले हैं। रचना में समय-स्थान, प्रशस्ति आदि का अभाव ग्रन्थ में ग्रन्थ रचना का कोई समय अथवा प्रशस्ति नहीं दी गयी है। परन्तु ग्रन्थ की प्रत्येक सन्धि में भद्रबाहु' ऐसा नाम जरूर लगा हुआ है। कई स्थानों पर "मैं भद्रबाहु मुनि ऐसा कहता हूँ या कहूँगा" - इस प्रकार के उल्लेख मिलते हैं। एक स्थान पर - भद्रबाहुरूवाचेदं पंचमः श्रुतकेवली भद्रबाहु को हुए 2300 वर्ष से अधिक बीत गए, किंतु इतनी लम्बी अवधि में किसी मान्य आचार्य की कृति या किसी प्राचीन शिलालेख में इस
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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