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________________ 180 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements होगा और यह बात तो बिना हिचकिचाहट के कही जा सकती है कि इस प्रकार के परीक्षा लेख जैन साहित्य में सबसे पहले है। " फलत: समाज ने भट्टारकों द्वारा मान्य एवं लिखित विविध ग्रन्थों का अध्यापन एवं अध्ययन बन्द किया । निरन्तर चलने वाली लेखनी ने उन्हें श्रेष्ठ भाष्यकार, इतिहासकार एवं निर्भीक समीक्षक के रूप में प्रतिष्ठा प्राप्त कराई । स्व. पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार सा. बड़े ही सहिष्णु एवं साहसी थे । परिवार के प्रिय सदस्यों की मृत्यु ने उन्हें अपने कर्त्तव्यपथ से विचलित नहीं किया । ग्रन्थ परीक्षा लिखने पर समाज के पट्टाधीशों ने उन्हें पापी, धर्म विरोधी, आर्षविरोधी कहा तथा धमकियां दी; पर वे अपने मार्ग से विचलित नहीं हुए। वे अपने विचारों एवं कृतकार्यों पर पूर्ण विश्वास के साथ अडिग रहते थे । वे कभी शत्रु पर भी नहीं बिगड़ते थे । असत्य बातों और विचारों को सुनकर उन्होंने चुप रहना नहीं सीखा था। वे असत्य विचारों का प्रतिवाद होने तक शान्ति नहीं पाते थे । स्व. पंडित मुख्तार सा जितने साहसी थे उतने ही पुरुषार्थी थे। बीमारी की स्थिति में भी उनकी रचनायें प्रकाशित होती रहती थी। उन जैसा कर्मठ दृढ़अध्यवसायी साहित्य तपस्वी अन्य नहीं हुआ। उनके कार्यों का मूल्यांकन कर कलकत्ता समाज ने उन्हें वाङ्मयाचार्य की उपाधि से विभूषित किया था। निरन्तर साहित्य साधना एवं साहित्य विकास की विशुद्ध भावना ने विद्यापीठ एवं वीरसेवा मंदिर सरीखे महत्वपूर्ण संस्थान स्थापित कर पुरुषार्थी होने का परिचय दिया । सामाजिक वस्तुओं एवं धन का सुरीत्या उपयोग करना उनके श्रेष्ठ ट्रस्टी होने का परिचय देते हैं वे स्वभाव से अत्यधिक कोमल थे। उनके कार्य उन्हें कर्मयोगी सिद्ध करते हैं। उर्दू फारसी भाषा का प्रारम्भिक ज्ञान प्राप्तकर स्वाध्याय द्वारा हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश आदि भाषाओं के अधिकरी विद्वान बने पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार ।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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