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________________ 162 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer Personality and Achievements महावीर द्वारा निर्देशित मार्ग पर चलकर अपनी अनुभूति द्वारा सिद्ध स्वरूप को प्राप्त करना है।" निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि कवि श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार "युगवीर" ने युग की वाणी को अपनी कविता का सुहाग बनाया। युग की इस भावपरक एवं काव्योत्प्रेरक भूमिका में, कवि ने भगवान महावीर के सदृश घोर अंधकार में आत्म-ज्ञान-दीप-बाती को प्रज्जवलित करने वाले, युग-द्रष्टा का संरक्षण एवं संवर्द्धक आसव प्राप्त किया तथा कवि की काव्य - कलिकाएँ अपने पल्लव प्रस्फुटित करने लगी और जीवन की उत्कृष्टता राष्ट्रीय पथ पर अग्रसर हो गई। युगवीर जी की कविता भारती का श्रृंगार है। इसमें माधुर्य का निवेश, प्रसाद की स्निग्धता, पदों की सरस शय्या, अर्थ का सौष्ठव एवं अलंकारों का मंजुल प्रयोग हुआ है। इनकी कविताओं में भारतीय समाज का सच्चा स्वरूप अंकित है। चुने हुए थोड़े शब्दों में भावों को अभिव्यंजित करना, इनकी कविता का विशेष गुण है। काव्यत्व की दृष्टि से प्रसाद, माधुर्य गुणों का समावेश तो हुआ ही है पर उक्तियों में ओजगुण भी विद्यमान है। मानव के विकार और उसकी विभिन्न चित्रवृतियों का अपनी कविताओं, में कवि "युगवीर" ने भावात्मक शैली में हृदय की अनुभूतियों द्वारा सरल रूप में अभिव्यक्त किया है। "युगवीर" जी का काव्य राष्ट्रीय चेतना से सम्पृक्त काव्य है जिसमें प्राचीन मूल्य संपदा, स्वच्छ राजनीति, मानव कल्याण, धर्म, आदर्श, समाजवादी, व्यवस्था आदि की अमिट चित्र छवियाँ अंकित हैं, उन्होंने अपने काव्य के माध्यम से राष्ट्रीय एकता के खतरों के सावधानीपूर्वक समाज तथा राष्ट्र के समक्ष रखा, तथा विश्वबन्धुता, कृतज्ञता, न्यायप्रियता, सदाचार, सहनशीलता का सुन्दर चित्रण किया और संसार में सभी जीवों के प्रति मित्रता रखने के लिए प्रेरित किया। आज देश में समाज में एकता की जरुरत है इसलिए हम पहिले मनुष्य बनें और मानवता का विकास करें।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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