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________________ 153 - - पं गुगलकिशोर मुखार "युमवीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व "प्राणों को तड़पाने वाली हुंकारों से बल थल भर दे। अनाचार के अम्बारों में अपना ज्वलित पलीता घर दे." (प्रलयंकर "जूझे पते" कविता, छन्द 5) कवि श्री "युगवीर" जी ने इस कविता में सभी अन्यायी लोगों को देखकर आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि - "भला न होगा जग में उन्हों का, बुरा विचारा जिनने किसी का। न दुष्कृतों से कुछ भी है जो, सदा करें निर्दय कर्म ऐसे ॥" अतः सभी को अपने धर्म का पालन करते हुए कर्तव्य पथ पर निःस्वार्थी बनकर चलते जाना है तथा जो अन्यायी, स्वार्थी, कपटी है उसके प्रति संघर्ष करके इस संसार को अहिंसात्मक, न्यायी, धर्मानुयायी बनाना है। __ "मानव धर्म" में "युगवीर" जी ने जाति, धर्म, छुआछूत आदि के भेदभाव को भुलाकर, मिल-जुल कर अपना-अपना कार्य करने की प्रेरणा दी है, क्योंकि जाति, धर्म के भेदभाव को लेकर देश के कर्णधार विद्वेष की भावना पैदा कर भारतीय समाज को विभिन्न वर्णों व जाति में विभक्त करा रहे हैं। कवि युगवीर जी ने अपनी कविता के माध्यम से बताया है कि जाति, धर्म,से गर्वित व्यक्ति अपने ही आत्मीय धर्म को ठुकराता है इसीलिये जाति और धर्म के माध्यम से विद्वेष पैदा नहीं करना चाहिये। उन्होंने कहा है - "जाति कुमुद से गर्वित हो जो धार्मिक को ठुकराता है, वह सचमुच आत्मीय धर्म को ठुकराता न लजाता है। क्योंकि धर्म धार्मिक पुरुषों के बिना कहीं नहीं पाता है, धार्मिक का अपमान इसी से वृष अपमान कहाता है।" अतः मानव धर्म "सर्वजनहिताय, सर्वजन सुखाय" के स्वरुप का प्रतिपादन करता है, मानव में मानवीयता के गुण विद्यमान होते हैं सत्य, अहिंसा, करुणा, परोपकार जैसे गुणों से युक्त होता है इन गुणों से रहित मानव में मानवता का संचार नहीं होता है।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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