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________________ Pandit Jugai Kishor Mukhtar "Yugveer Personality and Achievements गया। गुणानुवाद की यह यात्रा गुरुदेव के बिहार से विहार के साथ प्रत्येक ग्राम, जनपद और नगरमें विहार कर रही है और नयी पीढ़ी को विद्यालयों से विश्वविधालयों तक प्रेरित कर रही है, स्फूर्त कर रही है। परम पूज्य उपाध्याय 108 श्री ज्ञानसागर जी महाराज वर्तमान युग के एक ऐसे युवा दृष्टा, क्रान्तिकारी विचारक, जीवन-सर्जक और आचारनिष्ठ दिगम्बर संत हैं जिनके जनकल्याणी विचार जीवन की आत्यातिक गहराइयों, अनुभूतियों एवं साधना की अनन्त ऊंचाइयों तथा आगम प्रामाण्य से उद्भूत हो मानवीय चिन्तन के सहज परिष्कार में सन्नद्ध हैं। पूज्य गुरूदेव के उपदेश हमेशा जीवन-समस्याओं/सन्दों की गहनतम गुत्थियों के मर्म का संस्पर्श करते हैं, जीवन को उनकी समग्रता में जानने और समझने की कला से परिचित कराते हैं। उनके साधनामय तेजस्वी जीवन को शब्दों की परिधि में बाँधना सम्भव नहीं है, हाँ उसमें अवगाहन करने की कोमल अनुभूतियाँ अवश्य शब्दतीत हैं। उनका चिन्तन फलक देश, काल, सम्प्रदाय, जाति, धर्म-सबसे दूर, प्राणिमात्र को समाहित करता है, एक युग बोध देता है, नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा देता है, वैश्विक मानव की अवधारणा को ठोस आधार देता है जहाँ दूर-दूर तक कहीं भी दुरूहता नही है, जो है, वह है, भाव-प्रवणता, सम्प्रेषणीयता और रत्नत्रयों के उत्कर्ष से विकसित हुआ उनका प्रखर तेजोमय व्यक्तित्व, जो बन गया है करूणा, समता और अनेकान्त का एक जीवन्त दस्तावेज। पूज्य उपाध्याय श्री का जीवन, क्रान्ति का श्लोक है, साधना और मुक्ति का दिव्य छन्द है तथा है मानवीय मूल्यों की वन्दना एवं जन-चेतना के सर्जनात्मक परिष्कार एवं उनके मानसिक सौन्दर्य एवं ऐश्वर्य के विकास का वह भागीरथ प्रयत्न जो स्तुत्य है, वंदनीय है और है जाति, वर्ग, सम्प्रदाय भेद से परे पूरी इन्सानी जमात की बेहतरी एवं उसके बीच "सत्वेषु मैत्री" की संस्थापना को समर्पित एक छोटा, पर बहुत स्थिर और मजबूती भरा कदम। गुरूदेव तो वीतराग साधना पथ के पथिक हैं, निरामय हैं, निर्ग्रन्थ हैं, दर्शन, ज्ञान और आचार की त्रिवेणी हैं। वे क्रान्तिदृष्टा हैं और परिष्कृत चिन्तन के विचारों के प्रणेता हैं। महाव्रतों की साधना में रचे-बसे उपाध्याय श्री की संवेदनाएं मानव मन की गुत्थियों को खोलती हैं और तन्द्रा में डूबे मनुज को आपाद-मस्तक झिंझोड़ने की ताकत रखती हैं। परम पूज्य उपाध्याय श्री के सन्देश युगों-युगों तक सम्पूर्ण मानवता का मार्गदर्शन करें, हमारी प्रमाद-मूर्छा को तोड़े, हमें अन्धकार से दूर प्रकाश के उत्स के बीच जाने को मार्ग बताते रहें, हमारी जड़ता की इति कर हमें गतिशील बनाएं, सभ्य, शालीन एवं सुसंस्कृत बनाते रहें, यही हमारे मंगलभाव है, हमारे चित्त की अभिव्यक्ति है, हमारी प्रार्थना है।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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