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________________ युगवीर भारती के सत्प्रेरणा खण्ड की समीक्षा श्रीमती सिन्धुलता जैन, जयपुर सरसावा में जन्में कवि श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार युग कवि थे, उन्होंने अपने काव्य में विशाल भारतीय जीवन के अनेक समृद्ध चित्र दिये हैं। कलाकार जिस समाज में जन्म लेता है उसके सदस्य की हैसियत से ही सोचविचार, चिन्तन-मनन प्रस्तुत करता है, क्योंकि व्यक्ति का सामाजिक जीवन ही उसको चेतना, भावना, अनुभूति और कल्पना का मूल स्रोत होता है। लेखक समाज से केवल प्रभावित ही नहीं होता उसे प्रभावित करता भी है। श्री मुख्तार जी जिस परिवेश में हुए वह स्वाधीनता आन्दोलन, वर्णाश्रम, धर्म, छुआछूत, बाल-विवाह, अस्पृश्यता आदि का परिवेश था, उन्होंने इसी के अनुरूप काव्य सृजन किया है। कवि " युगवीर" कवि पहले हैं निबंधकार, आलोचक या इतिहासकार बाद में। कविता भावों की उद्घोषिका है। यह हृदय के ऊपर गहरी चोट करती है और मानव हृदय को तुरन्त उत्तेजित करती है तथा साधारण जनता के हृदय तक दर्शन तथा धर्म के गूढ़ तथ्यों को पहुँचाने का सर्वोत्तम साधन है। कवि युगवीर जी पं महावीरप्रसाद द्विवेदी, युगपुरुष निराला, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, बालकृष्ण शर्मा नवीन जी की भाँति आदर्शवादी, अक्खड़ एवं निर्भीक, विनोदप्रिय एवं साहसी थे। "युगवीर" औचित्य के तो मर्मज्ञ हैं ही, यही कारण है कि इनकी "युगवीर भारती" नामक काव्यकृति में कलापक्ष की अपेक्षा भावपक्ष अधिक मुखर है। उन्होने मानव हृदय की परिवर्तनशील वृत्तियों का चित्रण बडी ही कुशलता से किया है। कवि युगवीर का सांसारिक अनुभव इतना विस्तृत और गभीर है जिससे वे भावो के ग्रन्थन में भावुक होते हुए भी विचारशील बने रहते हैं। ससार के धार्मिक पक्षों को ग्रहण कर उन्होंने अपनी उच्च भावनाओं की अभिव्यक्ति अपनी कविताओं में की है ।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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