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________________ Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer" Personality and Achievements जुगलशिोर में बचपन से ही अलौकिक ज्ञान पिपासा थी। हिन्दी, अग्रेजी, संस्कृत उर्दू के साथ-साथ अनेक भाषाओं पर इन्हें पूर्ण पाण्डित्य प्राप्त था । निबन्ध, कविता लिखना इनकी दैनिक प्रवृत्ति के अन्तर्गत था । कुरीतियों और अन्ध-विश्वासो का निराकरण कर यथार्थ आर्ष मार्ग का प्रदर्शन करना, आपके संकल्पी कृत्य थे। साहित्य के प्रति आपके हृदय में सदैव समर्पण का भाव था । 142 " समर्पण - श्रद्धा के साथ, भक्ति बन जाता है । समर्पण विवेक के साथ, शक्ति बन जाता है || इसलिये समर्पण किसी भी, दर पर करना परन्तु । भेद विज्ञान के साथ हो, मुक्ति की युक्ति बन जाता है।" जिस प्रकार उन्मुक्त पक्षी आकाश में स्वेच्छा पूर्वक उड़ता है, उसी प्रकार आप भी समाज में वैचारिक क्रान्ति कर, अबाधगति से समाज और वाड्मय के क्षेत्र में उड़ान भरना चाहते थे। कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' ने कविता के माध्ययम से पक्षी की उन्मुक्तता को प्रकट किया है। "हमें न बांधों प्राचीरों में । हम उन्मुक्त गगन के पंछी हैं । पञ्जर बद्ध न गा पायेंगे । कनक तीलियों से टकराकर । प्रमुदित पंख टूट जायेंगे || " - 'युग भारती' सम्बोधन खण्ड 3 का समीक्षात्मक विश्लेषण करने से पूर्व पं मुख्तार सा की काव्यत्व प्रतिभा का उद्भव विषयक उल्लेख कर संक्षिप्त जानकारी अपेक्षित होने से यहाँ स्पष्ट किया गया है कि मुख्तार सा अपने अनन्य मित्र पं नाथूराम जी प्रेमी के यहाँ गये थे। उनके बच्चे हेमचन्द के हाथ में काँच से चोट लगने से पीड़ा हुई। उन्होंने बच्चे के शब्दों की तुकबन्दी की, और कविता बन गई "काका तो चिमनी से, डरत-फिरत है । काट लिया चिमनी ने, सी-सी करत हैं ॥
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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