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________________ 138 Pandit Jugal Kishor Mukhtar "Yugveer Personality and Achievements भाव-भरी इस पूजा से ही होगा आराधन तेरा, होगा तब सामीप्य प्राप्त औ. सभी मिटेगा जग फेरा॥ युगवीर जी ने भाव-पूजा के औचित्य की पुष्टि में 'पाद टिप्पणी' में आ. अमितगति के उपासकाचार के श्लोक का भी उल्लेख किया है जिसमें द्रव्य-भाव पूजा की परिभाषा है। वचो विग्रह संकोचो द्रव्यपूजा निगद्यते। तत्र मानस संकोचो भावपूजा पुरातनैः॥ काय और वचन को अन्य व्यापारों से हटा कर परमात्मा के प्रति हाथ जोड़ने शिरोनति करने, स्तुति पढने आदि द्वारा एकाग्र करने का नाम द्रव्य पूजा और मन की नाना विकल्पजनित व्यग्रता को दूर करके उसे ध्यानादि द्वारा परमात्मा मे लीन करने का नाम भाव पूजा है। ऐसा पुरातन आचार्यों ने अंग पूर्वादि शास्त्रों के पाठियो ने प्रतिपादन किया है। बाहुबलि और महावीर जिन अभिनन्दन कविताओं में इन दोनों नायकों का चरित्र वर्णित है। भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उत्तम काव्य रचना है। "कर्म बन्ध से बंधे सभी संसारी प्राणी अपनी सुधि सब भूल दुःख सहते अज्ञानी॥ उसके ही हित अवतरी सन्मति वाणी उनके भाग्य विशाल, सुनी बिनने वाणी॥ निश्चय से व्यवहार सर्वथा भिन्न नहीं है । दोनों ही है मित्र शत्रुता नहीं कहीं है। एक विना अस्तित्व दूसरे का नहीं बनता । एक बिना नहीं काम, दूसरे का कुछ चलता है । विश्व अनादि अनन्त कोई नहिं कर्ता हानिब कर्मों का भोग, भोगना खुद ही पड़ता। अन्तर्वहि दो हेतु मिले, सब कारज सधता। निज स्वभाव तज कोई द्रव्य पररुपन बनता ॥ निज परिणामों को संभालका तत्व सुझाया। सुख दुख में समभाव धरण कर्तव्य बताया। अनासक्ति मय कोई योग का मर्म बताया। भकि योग औ ज्ञान योग का गुण दर्शाया॥" 'मेरी भावना' कविवर युगवीर की सबसे प्रसिद्ध और मौलिक रचना है। यह एक राष्ट्रीय कविता है जो सर्वोदयी भावना से युक्त मानवमात्र के हितार्थ रचित है। यह जैन समाज के सदृश जो सर्व प्रथम सन् 1916 में छपी थी जैनेतर समाज में भी उतनी ही लोकप्रिय है। इसके अनेक संस्करण प्रकाशित होते रहे हैं। राज. वि.
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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