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________________ पं जुगलकिशोर मुख्तार "युगधीर" व्यक्तित्व एवं कृतित्व 135 युगवीर भारती का कविताओं के रचयिता पं. जुगलकिशोर जी मुख्तार जैन समाज के उन प्रतिष्ठित विद्वानों में से हैं, जिनकी साधना से बहुतों ने प्रेरणा प्राप्त की है। युगवीर भारती में सन. 1901 से 1956 के मध्य रचित कविताओं का संकलन है। सभी खण्डों के पधों में पाठकों को ऐसी अनेक रचनाएं मिलेगी; जिन्हें एक बार नहीं, कई बार पढ़ने की इच्छा होती है। कतिपय कविताएं तो दैनिक स्वाध्याय के लिये है। मेरी भावना' तो जैन - जैनेतर सर्वत्र सर्वमान्य है। यद्यपि संकलन की अधिकांश रचनाएं जैन मान्यताओं की है तथापि वे सर्वोपयोगी है। युगवीर भारती की कविताएं वस्तुतः भारती का श्रृंगार है। इनमें माधुर्य का मधुर निवेश, प्रसाद की स्निग्धता, पदों की सरस शय्या, अर्थ का सौष्ठव एवं अलंकारों का मंजुल प्रयोग है। इनमें भारतीय समाज का सच्चा स्वरूप है। वर्ण्य विषय एवं वर्णन प्रकार में मंजुल सामञ्जस्य इन कविताओं का गुण है। अत्यल्प शब्दों में भावों की अभिव्यक्ति विशेष गुण है। डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य के शब्दों में युगवीर जी औचित्य के मर्मज्ञ हैं। यही कारण है कि इनके काव्य में कला पक्ष की अपेक्षा भाव पक्ष अधिक मुखर है। मानव हृदय को परिवर्तनशील वृत्तियों का चित्रण बड़ी ही कुशलता के साथ किया गया है। कवि युगवीर का सांसारिक अनुभव इतना विस्तृत और गम्भीर है कि वे भावों के ग्रंथन में भावुक होते हुये भी विचारशील बने रहते हैं। धार्मिक पक्षों को ग्रहण कर भी उन्होंने अपनी विशेष-विशेष भावनाओं की अभिव्यक्ति की है। युगवीर भारती में संस्कृत एवं हिन्दी दोनों भाषाओं में रचित कविताएं हैं। संस्कृत वाग्विलास खण्ड में कुल दस कविताओं का संग्रह है। 'वीर जिन-स्तवन' के पांच छन्दों में विविधरुप में वीर प्रभु की वन्दना की गई है। मोहादि जन्य दोषान्यः सर्वाञ्जित्वा जिनेश्वरः। वीतरागश्च सर्वज्ञो जातः शास्ता नमामि तम् ॥ जो मोहादि जन्य दोषों को जीतकर जिनेश्वर, वीतराग, सर्वज्ञ और शास्ता हुए हैं; उन वीर को मैं नमस्कार करता हूँ।
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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