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________________ 128 Pandit Jugal Kishar Mukhtar "Yugvoer"Personality and Achievements किया है। इसके पदों पर ध्यान देने से ज्ञात होता है कि विभिन्न आचार्य वर्ग कृत रचनाओं को उन्होंने हित परक दृष्टि से अपने शब्दों में संकलन रूप में व्यक्त किया है। ये पद्य जहाँ आर्ष ग्रन्थों के विशिष्ट स्थलों के विशिष्ट अनुवाद हैं, वहीं कुछ आवश्यक कथनीय जोड़कर व्याख्या के रूप में सिद्ध होते हैं। प्रस्तुत संक्षिप्त आलेख का अभिप्रेत यह है कि मेरी भावना का कौन सा पध किस आगमांश या प्राचीन लोकहितकारी संस्कृत काव्य का रूपान्तर है यह प्रस्तुत किया जाय । आचार्य जुगलकिशोर जी ने वाङ्मय के विभिन्न स्थलों से सूक्तिरुपी मणियाँ चुन-चुन कर अज्ञान के विभिन्न अन्धकाराच्छादित क्षेत्रों को प्रकाश प्रदान कर विश्वजन हिताय प्रस्तुत की है।संकलन की यह प्रणाली अनूठी है।इस भावना मूलक काव्य का चिन्तन करने से मन-वाणी-शरीर तीनों की शुद्धि होकर जीवन में शान्ति का अनुभव अवश्य होता है। यह इसीलिए वर्तमान में सर्वप्रसिद्ध कण्ठहार के रूप में सर्वजनप्रिय है। पढ़ा हो अनपढ़ हो, वृद्ध हो चाहे युवा, स्त्री हो या पुत्र हो, धनी हो या निर्धन सभी मन से इसका पारायण करते हैं। __ मेरी भावना में सर्वप्रथम मंगलाचरण के रुप में निम्न पद्य प्रकट किया गया है, जिसने रागद्वेष कामादिक जीते सब जग जान लिया। सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया। बुद्ध वीर जिन हरिहर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो। भक्ति भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो॥१॥ यह पद्य सम्यक्त्व के मूल स्रोत आप्त या अरिहन्त देव तीर्थकर प्रभु के स्वरूप का अवबोधक है। आप्त के तीन लक्षणों- वीतरागता, सर्वज्ञता एवं हितोपदेशता का निरुपण कर युगवीर ने निरुप्य देव की विशेषताओं को प्रकट किया है। अव्याप्त अतिव्याप्त एवं असंभव दोषों से रहित लक्षण ही लक्षण होता है, शेष लक्षणाभास हैं। कवि मूलतः आचार्य, समन्तभद्र से विशिष्ट प्रभावित परिलक्षित होता है उनके निम्न श्लोक 'युगवीर' की भावना के आधांश के संकलन स्त्रोत हैं
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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