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________________ मेरी भावना : आगमोक्त भावनामूलक सारांश संकलन शिवचरण जी मैनपुरी ज्ञान का दीपक जला तप-तेल भर ज्ञानपूरित ज्ञान का सागर बना है। मन सभी का भक्तियुत उन ज्ञान सागर साधु-चरणों में समा है। आज मेरी भावना चिर भावना हो आत्महितकर भावना की साधना हो। भावना मेरी रहे युगवीर तक मान करती भावना सद्भावना हो। कभी-कभी इस पावन भारत वसुन्धरा पर ऐसे युगपुरुष जन्म लेते हैं जिनके उज्जवल प्रयत्नों के द्वारा राष्ट्र की शोभा में चार चांद लग जाते हैं। उन्हीं में अग्रगण्य सिद्धान्ताचार्य पंडित जुगलकिशोर मुख्तार का नाम है। वे सरस्वती के वरद पुत्र थे ही उनका आचरण केवल जैन समाज के लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण भारत राष्ट्र और विश्वव्यापी मानवता के हितार्थ हुआ था। बहु आयामी व्यक्तित्व युगवीर - युगवीर जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी प्रखर प्रज्ञापुञ्ज थे। वे एक ओर जहाँ अपार पांडित्य के धनी थे, वहीं समाज सुधारक स्वतन्त्रता सेनानी एवं पूर्ण मानव थे। वे अपने जीवन में सह अस्तित्व के दिव्य मंत्र को चरितार्थ कर रहे थे। वे सरस्वती साधक के रूप में विख्यात हैं। लेकिन प्रकाशन, वाचन-प्रवचन आदि जिनवाणी प्रसार की सभी विधाओं में वे पारंगत थे। उनकी दिव्य लेखनी जैनधर्म और जैन वाङ्मय के सभी पक्षों पर अनवरत रत रहती थी। निबन्ध काव्य, श्लोक, समालोचना, इतिहास, शोधालेख, समीक्षा, भाव्य एवं संपादन आदि भारती के विविध रूप
SR No.010670
Book TitleJugalkishor Mukhtar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalchandra Jain, Rushabhchand Jain, Shobhalal Jain
PublisherDigambar Jain Samaj
Publication Year2003
Total Pages374
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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